पर्यावरण का बिगडता संतुलन और मानव जीवन
भारत ही नहीं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वह भाग जहॉ जीवन की झलक है, आज पर्यावरणीय प्रदूषण से प्रभावित हुआ है। ऐसा नहीं कि बिगड.ते पर्यावरण के सन्तुलन से सिर्फ मानव जीवन ही प्रभावित हुआ हो, कोई भी प्राणी इससे अछूता नहीं है। मनुष्य के विलासिता पूर्ण जीवन, औद्यौगिक विकास और ऊर्जा स्रोतों के असीमित दोहन से पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हुई है।
पर्यावरण के अन्तर्गत वायु, जल तथा भूमि और उनमें उपस्थित समस्त तत्व सम्मिलित होते हैं। इनके प्रदूषित होने से जलवायु, वातावरण और पेड.-पौधे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। इनकी अनुपस्थिति में जीव जगत पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।वायुमण्डल में जीवन को गति देने वाली गैसों की मात्रा एक निष्चित अनुपात में होती है। यदि इनकी मात्रा का अनुपात बिगड.जाता है तो प्रदूषण की समस्या बन जाती है। मनुष्य अपना भोजन और जीवित रहने के लिए आक्सीजन पौधों से ही प्राप्त करता है। पौधे वायुमण्डल से प्राप्त कार्बन-डाइआक्साइड और पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल के साथ सूर्य के प्रकाष की उपस्थिति में अपना भोजन बनाते हैं और मानव की ऊर्जा स्रोत आक्सीजन छोड.ते हैं। भूमण्डल पर निरन्तर विकास की अवधारणा के कारण पर्यावरण की समस्या अधिक विकराल हो गयी है।
भारत में जंगलों का विनाष करके वहॉ सीमेंट और कंकरीट के महल बनाये जा रहे हैं। वनों को काटकर स्थापित किए गए कारखाने वहॉ से निकलने वाली नदियों के स्वच्छ जल में जहर घोलते हैं। साथ ही उनसे निकलने वाला धुऑ हमारे वायुमण्डल में हानिकारक गैसें अनवरत मिला रहा है।वनों की व्यापारिक कटाई और खनिज उद्योग, सड.कें, पर्यटन और अनेक जल आधारित परियोजनाओं के निर्माण से अनेक वनों का हृस पहले ही हो चुका है। निसंदेह मनुष्य अपने उपभोग के लिए पेड.-पौधों और जंगलों को काटकर अपनी अकाल मौत को दावत दे रहा है जबकि पौधे उत्पादक और मनुष्य उपभोगता है।
ईंट-भटठों से निकलने वाले धुए तथा भूमि, जल और नभ में बढ.ते यातायात के साधनों के कारण वायुमण्डल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा तीब्र गति से बढ. रही है जो पृथ्वी के चारों ओर एकत्रित होकर ग्रीन हाउस का निर्माण कर रही है। इस प्रक्रिया से पृथ्वी का निरन्तर तापमान बढ. रहा है जो सूखा, असमय वर्षा, जल स्तर में लगातार कमी जैसे घातक दुष्परिणाम सामने ला रहा है। जलवायु परिवर्तन आज के समय की सबसे बड.ी समस्या बन चुकी है।वास्तव में वनों और वृक्षों के मानव पर असीमित उपकार हैं जो प्रकृति द्वारा उसे मुफत में ही प्रदान किये गए हैं। पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाये रखने और वर्षा के कारण भूमि अपरदन को रोकने में पेड.-पौधों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ये मनुष्य की समस्त जरूरी आवष्यकताओं और दवाइयों की पूर्ति करते हैं।
जीवन को विनाष से बचाने और पर्यावरण का सल्तुलन बनाये रखने का एक मात्र उपाय है वृक्षारोपड.। वनों और वृक्षों से हमें आवष्यकतानुरूप सब कुछ मिलता रहेगा, लेकिन उन्हें सुरक्षित रखने का काम पौधारोपड. और उनकी कटान को रोककर हमें करना होगा, नहीं तो मानव स्वरचित संहारक विज्ञान के भयानक और गहरे सागर में समा जाएगा।
रामसेवक वर्मा
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