आचार्य पंडित विमलेश त्रिवेदी ने श्रोताओं को कंस उद्धार की कथा सुनाई

पुखरायां कस्बा के संत सुआ बाबा मंदिर परिसर में पुरुषोत्तम मास के पावन अवसर पर बीते गुरुवार से आयोजक मंडल द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठ दिवस में मंगलवार को चित्रकूट धाम से आए आचार्य पंडित विमलेश त्रिवेदी जी महाराज ने श्रोताओं को कंस उद्धार की कथा सुनाई।

ब्रजेन्द्र तिवारी, पुखरायां। पुखरायां कस्बा के संत सुआ बाबा मंदिर परिसर में पुरुषोत्तम मास के पावन अवसर पर बीते गुरुवार से आयोजक मंडल द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठ दिवस में मंगलवार को चित्रकूट धाम से आए आचार्य पंडित विमलेश त्रिवेदी जी महाराज ने श्रोताओं को कंस उद्धार की कथा सुनाई। जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए।कस्बे के सुआ बाबा मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में मंगलवार को आचार्य पंडित विमलेश त्रिवेदी जी महाराज ने कथा का वर्णन करते हुए कहा कि हम मनुष्यों का अहंकार की कंस और रावण है अतः अपने अंदर बैठे हुए अहंकार को मार दो तो समझो कि कंस और रावण मर गया।और अगर हमारे अंदर अहंकार रूपी कंस और रावण बैठा है तो यह समझना चाहिए कि कंस और रावण अभी भी जिंदा हैं।भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ने अपने माता पिता वसुदेव,देवकी को जेल से छुड़ाया और अपने नाना उग्रसेन को सिंहासन पर बिठाया।तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी विद्या अध्ययन करने के लिए सांदीपन गुरु के यहां जाकर विद्या अध्ययन करते हैं।ध्यान देने योग्य बात यह है कि चाहे भगवान श्रीराम हों या भगवान श्रीकृष्ण।गुरु की आवश्यकता सभी को पड़ी।भगवान ने यह लीला करके हम सभी मनुष्यों को यह शिक्षा दी कि गुरु की आवश्यकता सभी मनुष्यों को है।जिनका कोई गुरु नहीं,उनका जीवन शुरू नहीं।जब हमारे जीवन में किसी संत या आचार्य का प्रवेश होता है तभी हम यह समझ पाते है कि हम मनुष्य हैं।जिस प्रकार से बिना मल्लाह के नौका नदी के उस पार नहीं जा सकती उसी प्रकार मनुष्य बिना गुरु कृपा के भवसागर के पार नहीं जा सकता है।अतः हम सभी लोगों को गुरु के चरणों का आश्रय अवश्य ही लेना चाहिए।कथा को सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए।कथा का समापन बुधवार को होगा।वहीं गुरुवार को कथा के समापन के अवसर पर हवन पूजन के पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन किया जायेगा।इस मौके पर माया ओमर, रेखा ओमर, एकता, विनी, पूनम, कामिनी, स्वाती, पुष्पा सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।

Author: Pranshu Gupta

Pranshu Gupta

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