साहित्य जगत

डिजिटल साक्षरता से अनभिज्ञ ग्रामीण किशोरियां 

आज का युग सूचना तकनीक का युग है। सूचना क्रांति की इस दौड़ से पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज बन गई है। सूचना भेजने से लेकर प्राप्त करने तक के सभी कार्य अब सुलभ और अनिवार्य होते जा रहे हैं।

आज का युग सूचना तकनीक का युग है। सूचना क्रांति की इस दौड़ से पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज बन गई है। सूचना भेजने से लेकर प्राप्त करने तक के सभी कार्य अब सुलभ और अनिवार्य होते जा रहे हैं। ऑनलाइन परीक्षा, बैंक लेनदेन, व्यापार-धंधा, पढ़ाई-लिखाई, देश-दुनिया के समाचार, सूचना, योजना, परियोजना, कार्यक्रम आदि की जानकारी प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है। स्मार्ट मोबाइल के आ जाने से सारा काम चुटकियों में हो जा रहा है। पढ़े-लिखे के अलावा अनपढ़ भी स्मार्ट फोन (डिजीटल टूल्स) के इस्तेमाल करके नवीनतम जानकारियों से रू-ब-रू हो रहे हैं। यूं कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मोबाइल ने मुश्किल काम को सर्वसुलभ बना दिया है। लेकिन अभी भी देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसके पास यह सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं है. भारतीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के अनुसार भारत में केवल 27 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जहां किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है। वहीं 12.5 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे हैं जिनके पास इंरनेट की सुविधा उपलब्ध है। केवल महिलाओं की ही बात की जाए तो भारत में मात्र 16 प्रतिशत महिलाएं ही मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी हैं जो डिजिटलीकरण की दिशा में लैंगिक विभेद को साबित करता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का प्रतिशत कितना होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. 

 

अगर बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण तक महिलाओं की पहुंच की बात की जाए तो यह आंकड़ा बहुत कम है. हालांकि महिलाओं व किशोरियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए बिहार सरकार की अलग-अलग योजनाओं पर काम चल रहा है। सरकार द्वारा चलाई जा रही महत्वपूर्ण योजना है- बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सुरक्षित मातृत्व सुमन योजना, फ्री सिलाई मशीन योजना, प्रधानमंत्री समर्थ योजना आदि हैं. इन योजनाओं का लाभ ग्रामीण परिवेश से आने वाली किशोरियों की जिंदगी बेहतर करना है। लेकिन अभी भी कुछ गांव में महिलाओं व किशोरियों के बीच बहुत सारी चीजों को लेकर जागरूकता का अभाव है। उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी तक नहीं है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता एक ऐसा विषय है जिससे अनगिनत महिलाओं और किशोरियों के पास जानकारियां ही नहीं हैं। 

 

इसका एक उदाहरण बिहार के प्रमुख शहर मुजफ्फरपुर जिले से करीब 13 किमी दूर मुशहरी प्रखंड स्थित मनिकपुर गांव के मानिकचंद टोला (दलित बस्ती) है. जहां की महिलाओं व किशोरियों के डिजिटल साक्षरता से जुड़ी चौका देने वाले तथ्य सामने आए हैं। गांव की 18 वर्षीय सुमन हैरत से पूछती है कि डिजिटल साक्षरता क्या होता है? जब उससे पूछा गया कि क्या आप एंड्राइड मोबाइल के बारे में जानती हैं? और क्या आप मोबाइल का उपयोग करती हैं? तो उसने कहा कि हम सिर्फ बटन वाले मोबाइल के बारे में जानते हैं, जिससे केवल बात होती है. वहीं कई महिलाओं का कहना है कि पति उन्हें बटन वाला पुराना मोबाइल देते हैं. जिसमें पैसा भी नहीं डलवाते हैं.

 

वहीं किशोरियों का कहना है कि उनके माता-पिता मोबाइल उन्हें दो कारणों से नहीं देते हैं। पहला कि उनकी इतनीआमदनी नहीं है कि वह उन्हें ऐसे फोन दिला सकें और दूसरी बात वह यह सोचते हैं कि ऐसे फोन के इस्तेमाल से लड़कियां बिगड़ जाएंगी तो समाज में उनकी इज़्ज़त चली जाएगी। इस बात पर जब उनसे पूछा गया कि क्या आप यही सोच रख करअपने बेटे को भी मोबाइल नहीं देते होंगे? तो उनका कहना था कि कि लड़के अगर कुछ गलत भी करते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं। गांव के लोगों का कहना है कि हम गरीब हैं. मालिक के जमीन पर बसे होने के कारण उनके यहां काम करने पर पुरुष को 250 जबकि बाहर में वही काम करने पर 400 मिलता है। अगर बात करें महिलाओं की, तो उन्हें मात्र 100 ही मजदूरी मिलती है। जबकि दूसरी जगह काम करने पर 200 तक मिलते हैं। ऐसे में हम अपना और अपने बच्चों का पेट पाले या उन्हें महंगी मोबाइल खरीद कर दें।

 

इस बस्ती के करीब ही रजवाड़ा भगवानपुर पंचायत की मुखिया के पति रघुवीर प्रसाद यादव बताते हैं कि पंचायत में लगभग 40 से 50 लड़के एवं 18 से 20 लड़कियां हैं. इनमें से सभी लड़कों के पास आधुनिक फीचर वाले मोबाइल हैं. इनमें से कुछ ही लड़के उसका इस्तेमाल पढ़ाई के लिए करते हैं। बाकि लड़के दिन भर इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं. जबकि केवल 2 लड़कियों को ही कंप्यूटर का ज्ञान है। वह कहते हैं कि किशोरियों को डिजिटल रूप से साक्षर करने के लिए बहुत प्रयास किया जाता है, परंतु उनके माता-पिता की मंशा ही नहीं कि उनकी बेटियां डिजिटल साक्षर हों। 

 

बहरहाल, दलित-महादलित बस्ती की किशोरियां व महिलाएं सूचना क्रांति की इस दौड़ से कोसो दूर है। इनके सपने तो बड़े हैं पर सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन व जागरूकता की वजह से जीवन स्मार्ट नहीं बन रहा। जबकि ब्लाॅक और जिले में कई कौशल विकास मिशन के तहत डिजिटल साक्षर करने के लिए केंद्र खुले हुए हैं। पर, इन केंद्रों पर उपेक्षित और अभावग्रस्त किशोरियों व महिलाओं को हूनरमंद तथा सूचना तकनीकी जानकारियों से महरूम रखा जा रहा है। पूरे गांव में कुछ लड़कों के पास स्मार्ट फोन है, वहीं लड़कियों को स्मार्ट फोन देना माता-पिता भी नहीं चाहते। जिससे सामाजिक स्तर पर लड़कों व लड़कियों में अंतर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।

 

सवाल यह है कि जब लड़कियां डिजिटल रूप से साक्षर नहीं होंगी तो भविष्य की चुनौतियों व जानकारियों से कैसे परिचित होगी? समय है इन किशोरियों को पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर ब्लाॅक स्तर के अधिकारियों के माध्यम से कंप्यूटर शिक्षा, डिजिटलीकरण, स्किल सेंटर से जोड़कर डिजिटल भारत के सपनों को साकार करने की क्योंकि जब गांव पढ़ेगा तभी देश बढे़गा।

 

-प्रियंका साहू-

 

Print Friendly, PDF & Email
AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE

Related Articles

AD
Back to top button