लखनऊ,अमन यात्रा । नोएडा प्राधिकरण में फार्म हाउस भूखंडों के आवंटन में भी बड़ा ‘खेल’ हुआ। फार्म हाउस भूखंडों के आवंटन की योजना न सिर्फ सरकार की अनुमति के बिना शुरू की गई बल्कि योजना के दिशा निर्देशों की अवहेलना करते हुए अपात्र व्यक्तियों को भी फार्म हाउस आवंटित किए गए। सुविकसित क्षेत्रों के निकट आवंटित किए गए फार्म हाउसों के लिए प्राधिकरण ने आवंटन दर भी बहुत कम रखी जिससे लाभार्थियों को 2833 करोड़ रुपये से अधिक का अनुचित लाभ हुआ और प्राधिकरण को नुकसान।

विधानमंडल के दोनों सदनों में शुक्रवार को पेश की गई भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक फार्म हाउस भूखंडों के आवंटन के लिए 2008-11 के दौरान दो योजनाएं शुरू की गईं जिनमें 157 आवेदकों को 18.37 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र आवंटित किया गया था। आडिट में पाया गया कि फार्म हाउस योजना पूर्व अपेक्षित अनुमति और बिना समुचित सूझबूझ के शुरू की गई थी। नोएडा प्राधिकरण की योजना की शुरुआत से ही क्षेत्रीय योजना का उल्लंघन किया गया जिसमें आबादी क्षेत्र के बाहर फार्म हाउस की स्थापना की अनुमति दी गई थी। राज्य सरकार द्वारा भवन विनियमावली की अनुमति के बिना ही फार्म हाउस श्रेणी को प्रस्तावित कर दिया गया।

बेहद कम दरों पर हुआ आवंटन : रिपोर्ट के मुताबिक प्राधिकरण ने किसानों से कृषि भूमि अर्जित कर ऐसे सुविकसित क्षेत्रों के निकट फार्म हाउसों का आवंटन किया जिनमें कारपोरेट कार्यालय थे, बुनियादी ढांचा विकसित था और जो रियल एस्टेट बाजार में पर्याप्त प्रीमियम रखते थे। फार्म हाउस के लिए न्यूनतम आवंटन क्षेत्र 10000 वर्ग मीटर था जिसमें स्विमिंग पूल, आवासीय इकाई, खेल का मैदान आदि जैसी गतिविधियों की अनुमति थी। फार्म हाउसों के आवंटी आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति या संस्थाएं थीं। इसके बावजूद प्राधिकरण की ओर से निर्धारित आवंटन दर 3100 रुपये प्रति वर्ग मीटर थी जबकि 2008-09 में न्यूनतम भूमि दर 14400 रुपये थी। सीएजी ने फार्म हाउसों के आवंटन के लिए निर्धारित की गई इतनी कम दरों पर सवाल खड़ा किया है।

फार्म हाउस भूखंडों के आवंटन में शर्तों का उल्लंघन : आडिट में यह भी पाया गया कि फार्म हाउस भूखंडों के आवंटन में भूखंड आवंटन समिति के पास प्राप्त आवेदनों के मूल्यांकन के लिए कोई पारदर्शी मापदंड नहीं था। भूखंड आवंटन समिति को अत्यधिक विवेकाधिकार शक्ति प्राप्त थी। उसने अपने फैसलों के आधार को स्पष्ट किए बिना आवेदन को संतोषजनक या असंतोषजनक माना। बाद की योजनाओं में नियम और शर्तों के उल्लंघन चुङ्क्षनदा आवेदकों के लिए भूखंडों का आरक्षण किया गया। आडिट की विस्तृत जांच की खातिर लिये गए 51 आवंटनों में से 47 मामलों में पाया गया कि एक से अधिक शर्तों का उल्लंघन किया गया था और 11 आवेदकों के मामलों में सलाहकार, यूपीको की नकारात्मक रिपोर्ट का भूखंड आवंटन समिति ने संज्ञान ही नहीं लिया।

संस्थागत श्रेणी में कार्यालय भूखंडों के आवंटन से 3032 करोड़ की क्षति : रिपोर्ट बताती है कि संस्थागत श्रेणी के तहत वाणिज्यिक कार्यालयों के लिए कम आवंटन दरों पर भूखंडों का आवंटन किया गया था जिसमें आवंटियों को भारी अनुचित लाभ दिया गया क्योंकि संस्थागत और वाणिज्यिक भूमि के बीच आवंटन मूल्य का अनुपात लगभग 4 से 11 गुना का था। संस्थागत श्रेणी के तहत वाणिज्य कार्यालयों को भूखंडों के आवंटन के कारण प्राधिकरण को 3032 करोड़ रुपये की हानि हुई।

आइटी/आइटीईएस भूखंडों को गलत छूट : राज्य सरकार के आदेशों का उल्लंघन करते हुए प्राधिकरण ने 50 करोड़ रुपये और उससे अधिक निवेश प्रस्ताव वाली मेगा इकाइयों को छूट देने की बजाय सभी सूचना प्रौद्योगिकी/सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाओं इकाइयों से निवेश की अपेक्षा किए बिना ही सेक्टर दर पर 25 प्रतिशत की छूट दी। यह सिलसिला अक्टूबर 2012 के बाद भी जारी रहा जबकि राज्य सरकार ने इसके बाद छूट को समाप्त कर दिया था। इस तरह प्राधिकरण में आवंटियों को अनुचित लाभ दिया। आइटी/आइटीईएस इकाइयों को किए गए 153 आवंटनों में प्राधिकरण को 147.4 करोड़ रुपये की क्षति हुई।

अपात्र होने के बावजूद सीबीएस इंटरनेशनल को आवंटन : नोएडा प्राधिकरण ने संस्थागत क्षेत्रों में प्रचलित नियमों और शर्तों पर आईटी पार्क की स्थापना के लिए औद्योगिक क्षेत्र में सीबीएस इंटरनेशनल प्रोजेक्ट््स लिमिटेड (सीबीएस) को 52.77 करोड़ रुपये के प्रीमियम पर 102949 वर्ग मीटर का भूखंड आवंटित किया। आडिट में पाया गया कि आवंटन के लिए सीबीएस शुरू से हीअपात्र थी क्योंकि मेसर्स बर्चिल वीडीएम नामक एक विदेशी कंपनी आवेदन के समय सीबीएस में शेयरधारक नहीं थी लेकिन भूखंड के आवंटन की अर्हता दिखाने के लिए ऐसा दिखाया गया था। सीबीएस ने भूटानी समूह के साथ गैर आइटी/आइटीईएस इकाइयों को आवासीय स्टूडियो अपार्टमेंट और वाणिज्यिक स्थानों की बिक्री के लिए खुले तौर पर विज्ञापन दिया जबकि यह केवल आइटी/आइटीईएस इकाइयों को उनके कैपटिव उपयोग के लिए दिया जाना था। इस मामले में नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की उदासीनता से आवंटी को 745.56 करोड़ रुपये की सीमा तक अनुचित लाभ हुआ।