राजनीति की बात करे
या करे सामान्य जन जीवन की
तो सत्ता की अहम भूमिका हैं उसमें
हर किरदार, हर भाग ,शक्ति और सामर्थ बिन अधूरा,जैसे मछली जल बिन ।
सत्ता विहीन सख्श नही किसी काम का
मान,सम्मान भी नही पूरा उसे मिलता
अपने नाम का
प्रभुत्व,प्रतिष्ठा और औधा
भी कायल इस सत्ता का
आम इंसान,
भी नापता और तौलता
इंसान को सत्ता के दाम पर ।।
सत्ता का बोलबाला ऐसा
चाहे,
शोहरत और इज्जत चाहे मिले
दबंगई और गुंडागर्दी से
फिर भी,
चर्चाएं चहु ओर मशहूर
सत्ता का उपयोग और दुर्प्रयोग ।।
मनमाफिक
आखिर!
सत्ता के भई रंग हजार
जैसे,इंद्रधनुषी रंग ।।
स्नेहा के अंश(रचनाकार)