“अनुराग अबतक है”
हो गये तुम दूर पर अनुराग अबतक है।
डस रहा मुझको विरह का नाग अबतक है।
जल रही है मेदिनी आकाश दहका है।
हो गई बेकल हवा इतिहास बहका है।
दूर तक फैला हुआ वीरानियों का इक शहर,
बस तुम्हारी याद का मधुमास महका है।
आँसुओं से बुझ ना पाई आग अबतक है।
हो गये तुम दूर पर अनुराग अबतक है।
जो तुम्हारे साथ बीते सार्थक से क्षण कहेंगे।
बाद में जो भी घटे साँसों का निरर्थक रण कहेंगे।
जानता हूँ दाँव पर अस्तित्व मेरा है ‘रमन’
आप ही के काम आए तो प्रतिष्ठा पण कहेंगे।
थकने लगे हैं पाँव भागमभाग अबतक है।
हो गये तुम दूर पर अनुराग अबतक है।
याद मुझको आ रही नल की कहानी है।
या अयाति को समर्पित देवयानी है।
याद बरबस आ रहे हो तुम ‘रमन’ मुझको
रह रह महकती रातभर ज्यों रातरानी है।
और होली के अधर पर फाग अबतक है।
हो गये तुम दूर पर अनुराग अबतक है।
राम के मन में बसी हैं जानकी जैसे।
कृष्ण के उर में रहीं हैं रुक्मणी जैसे।
आप मानस में हमारे इस तरह आए,
चंद्र से मिलने चली कादंबरी जैसे।
आपके सानिध्य का प्रतिभाग अबतक है।
हो गये तुम दूर पर अनुराग अबतक है।
रमाकान्त त्रिपाठी’रमन’रूरा,कानपुर देहात,उत्तर प्रदेश।मो.9450346879