।। तेज़ाब के दंश
की मारी नारी ।।
# तेज़ाब की तपन से क्यूं
अक्सर,झुलसाई जाती हैं नारियां ।
क्यूं, उस दर्द की पीर से
गुजारी जाती हैं नारियां ।।
देखा हैं अक्सर ऐसा,
डर डर के जीती हैं नारियां ।
चलती हैं राहों में
सहमे सहमे कदमों से क्यूं
अक्सर नारियां ।।
कभी फूल सा चेहरा तो कभी
नाजुक सा तन
होता हैं इस ज़हर का शिकार ।।
आखिर!
क्यूं,हरदम इस आग में
जलाई जाती हैं नारियां ।।
गलती क्या हो जाती हैं उनसे
फिर क्यों,
एक तरफा प्यार के इल्जाम
में बदनाम की जाती हैं नारियां ।।
नारी में भी एक जान हैं पलती
फिर, क्यूं
दर्द की टीस से भर दी जाती हैं नारियां ।।
तेज़ाब
हैं एक ज़हर ।।
फिर, क्यूं
इस विष से नहलाई जाती हैं अक्सर नारियां ।।
स्नेहा कृति (रचनाकार)कानपुर, यूपी