सम्पादकीयसाहित्य जगत

“उमंगों की उड़ान (लघुकथा)”

अमन यात्रा

जानकी गोपाल की परवरिश को लेकर बहुत चिंतित थी। बहुत सारी समस्याओं से घिरे होने के कारण वह हर समय गोपाल के बारे में सोचा करती थी। वह अपने बच्चे को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कौशल में भी निपुण बनाना चाहती थी। कुछ समय पश्चात उसकी अपनी पुरानी सहेली उमा से भेंट हुई। उमा एक सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थी। उमा में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उसके लिए उपलब्धियाँ और आलोचना सहज रूप से शिरोधार्य थी। जीवन के कड़वे अनुभव और संघर्ष के बावजूद भी उसने अपने चेहरे से मुस्कुराहट कम नहीं होने दी।

समस्याएँ तो उसके जीवन में भी थी पर समस्याओं को पीछे छोडते हुए सपनों को साकार करने का गुण उसे आता था। जब जानकी उमा से मिली तो पता नहीं क्यों उसमें सकारात्मक विचारों के भाव उत्पन्न हो रहे थे। वह अपनी सहेली की निपुणता तो पहले से ही जानती थी। उसने अपने असमंजस विचार और मन की बात उमा के सामने रखी। उमा ने उसे विचारों के भटकाव से दूर केवल गोपाल पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही।

उसने उसे समझाया की यदि वह गोपाल को उत्साह वाले उमंगों की उड़ान देना चाहती है तो उसे अपने प्रयत्नों की ऊँचाई बढ़ानी होगी। असफलता का सफर ही जीवन में अकेला तय करना होता है। वही समय खुद से जूझने वाला होता है। सफलता की सजावट में तो सभी के रंग शामिल होते है। सच्चे मन से किए गए प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होते है।

 

उमा की इन बातों ने जानकी के मन में उमंग और उत्साह के भावों का संचार किया और उसने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ्ने का निर्णय लिया और आने वाले समय में गोपाल को मनचाहे सपनों की ऊँची उड़ान दी। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की कभी-कभी सही लोगों के सही समय पर मार्गदर्शन से हमारे मन के संशय दूर हो जाते है और इस संशय के जाल से मुक्त होकर एक उज्ज्वल पथ की नींव रख सकते है। कभी-कभी दूसरों के अनुभव भी जीवन में सफलता की श्रेष्ठ कुंजी सिद्ध हो सकते है। जीवन में प्रगति के पथ पर हमें अडिग रूप से चलना होता है जिसकी उड़ान आशावादी नजरिए और निरंतर संघर्ष से ही प्राप्त की जा सकती है।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

Print Friendly, PDF & Email
AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

AD
Back to top button