कविता

मां

रामसेवक वर्मा

यादों के झरोखे से मैंने, जब अपनी मां को देखा।

सामने आ गई लम्हों की, समस्त रुप रेखा।।

जब घर में नहीं थे, खाने को निवाले।

फसलों पर पड़ गये थे, बिल्कुल पाले।।

तब तुम कहां से, अनाज लाती थी।।

खुद भूखे पेट रहकर, मुझे तुम खिलाती थीं।।

चेहरे की मुस्कान फिर भी, कभी न होती लीन।

और अपने काम में रहती, हर पल तल्लीन।।

फिर भी बचपन की यादें, विकट हो गई।

लगने लगा जैसे मां, प्रकट हो गई।।

मैं सुनाने लगा उन्हें, हृदय की बातें।

मां तुम बिन अच्छी नहीं, लगती अब रातें।।

तुमने अपने आंचल में छुपा कर, यदि लोरी सुनाई न होती।

तो आज हमने जिंदगी की लय, अपनी धुन में बजाई न होती।।

मौलिक एवं स्व रचित

 

                                          राम सेवक वर्मा

विवेकानंद नगर पुखरायां कानपुर देहात उ०प्र० भारत

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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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