करियर

कला की दुनिया में आओ, फ्यूचर बनाओं

कला के प्रति हमारे यहां लोगों का रुझान सदा से रहा है। लेकिन इसमें बदलाव यह आया है कि पहले जहां सिर्फ इनकी खूबसूरती के ही कद्रदान हुआ करते थे, वहीं अब लोग इनमें निवेश भी करने लगे हैं।

कला के प्रति हमारे यहां लोगों का रुझान सदा से रहा है। लेकिन इसमें बदलाव यह आया है कि पहले जहां सिर्फ इनकी खूबसूरती के ही कद्रदान हुआ करते थे, वहीं अब लोग इनमें निवेश भी करने लगे हैं। बीते साल आर्ट म्युचुअल फंड के लांच होने से यह पता चलता है कि महत्वपूर्ण निवेशक अब भारतीय कला दृश्य के गंभीरता से लेने लगे हैं। अब तो कई आर्ट गैलरियां खुल गई हैं, कला की प्रदर्शनियां पहले से कहीं ज्यादा संख्या में लगने लगी हैं और कला की नीलामी में अब आलोचक और कला प्रेमियों के अलावा आम लोग भी इसमें हिस्सा लेने लगे हैं। कला की ओर बदलते इस परिवेश ने कलाकारों को बेहतर जिंदगी जीने का मौका दिया है। इन परिस्थितियों में आर्ट रिस्टोरर या आर्ट कंजर्वेटर की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है।

 

रीस्टोरेशन और कंजर्वेशन एक विशेष दक्षता वाला पेशा है, जिसमें कलाकृतियों का परीक्षण, डाक्यूमेंटेशन, उसकी देखभाल से लेकर पुरानी और नई कलाकृतियों को उनके असल रंग-रूप में संभालकर रखना है। रीस्टोरेशन और कंजर्वेशन के तहत सभी तरह की कलाकृतियां-जैसे, पेंटिंग, म्यूरल, स्कल्पचर, पाण्डुलिपि, टेक्सटाइल और अन्य कला$कृतियां आती हैं। हमारे यहां तो एंटिक और नई कलाकृतियां इतनी ज्यादा हैं कि यहां इस काम में दक्ष लोगों की जरूरत पड़ती रहती है। हाल में ही हामरे यहां इसकी जरूरत को महसूस किया गया है, क्योंकि कलाकृतियों का संरक्षण और सार-संभाल आसान नहीं है। रीस्टोरर का काम नकली और असली कलाकृतियों में फर्क करना भी है, क्योंकि कलाकृतियों की तस्करी हमारे यहां खूब होती है और नकली कलाकृतियों को उनके बदले सामने कर दिया जाता है।

 

कंजर्वेटर का दायित्व असली कलाकृतियों को संरक्षित करने के अलावा होने वाले नुकसान से बचाना भी है। अधिक गर्मी या ठंड से कैनवस को नुकसान पहुंचता है। धूल, मोमबत्तियों-अगरबत्तियों के धुएं और आद्र्रता से भी कलाकृति को नुकसान पहुंच सकता है। कई बार कलाकार भी अपनी कला को संरक्षण के लिहाज से कमजोर बनाते हैं, वे जल्दी टूटने, रंगहीन हो जाने, रंग बदलने या क्रैक हो जाने वाले मैटीरियल्स का इस्तेमाल करते हैं। एक दक्ष कंजर्वेटर में तकनीकी गुणवत्ता, अनुभव और कलाकृतियों को लेकर संवेदनशीलता होनी चाहिए।

 

दूसरी ओर, रीस्टोरर का काम नुकसान को ठीक करना भी है, इसके लिए कैनवस सपोर्ट में हुए खालीपन को भरना और कलाकृति के लुक को पेंट लेयर से बनाए रखना भी शामिल है। रीस्टोरेशन के काम में कई केमिकल और अन्य वैज्ञानिक प्रशोधन की जरूरत पड़ती है। एक कलाकृति को ठीक करने में घंटों और कई बार दिन भी लग सकते हैं। कई बार तो किसी कलाकृति को बनाने में जितना समय लगता है, उससे कहीं ज्यादा नकुसान की क्षतिपूर्ति में लग जाता है। कई पेंटिंग्स को तो उनके असली रंग-रूप में लाया जा सकता है, लेकिन वाटर कलर को बिल्कुल भी नहीं। ऑयल पेंटिंग को ठीक करने में पंद्रह दिन से लेकर एक साल तक लग सकते हैं, यह खराबी पर निर्भर करता है। स्कल्पचर को भी पेंटिंग की तरह ही सुधारा जाता है। हां, पाण्डुलिपि को सुधारने, छांटने और क्रम से लगाने में करीब तीन महीने जरूर लगते हैं।

 

किसी भी कला को रीस्टोर करने सुधारने यानी में कई अवस्थाएं होती हैं। इन्फ्र ा-रेड और अल्ट्रावायलेट स्कैन, एक्स-रे और केमिकल व माइक्रोस्कोपिक एनालिसिस जैसी नई लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके कलाकृति के नुकसान का पता लगाया जाता है, उसके बाद ही उक्त कला के ट्रीटमेंट का निर्णय लिया जाता है। इसके बाद काम आता है सफाई का, जिसमें सूक्ष्मता से धूल और जंग आदि हटाये जाते हैं। इसके बाद पेंटिंग की गड़बडिय़ों को कई मैटीरियल का प्रयोग करके सुधारा जाता है। रीटचिंग या इन पेंटिंग रीस्टोरेशन की अंतिम अवस्था है।

 

करियर काउंसलर उषा अल्बुकर्क के अनुसार, इस क्षेत्र में काम करने के लिए संबंधित प्रशिक्षण लेना जरूरी है, क्योंकि अप्रशिक्षित व्यक्ति खराब हुई कला को और खराब कर सकता है। प्रशिक्षण के बाद भी अनुभवी व्यक्ति के साथ काम करके कई साल अनुभव प्राप्त करने के बाद ही अकेले काम शुरू किया जा सकता है। एक बेहतरीन रीस्टोरर का पेंटिंग, स्कल्पचर, टेक्सटाइल, पाण्डुलिपि या फोटोग्राफी की ओर केवल रुझान ही नहीं, बल्कि दक्ष होना आवश्यक है। इस सृजनात्मक कुशलता के अलावा तुरंत ग्रहण करने की क्षमता, गहराई में जाने की इच्छा, दृष्टि संबंधी संवेदनशीलता और कला व कलाकारों के लिए सम्मान का होना जरूरी है। यदि धैर्य, टेक्निकल स्किल, साइंटिफिक टेम्परामेंट हो तो बहुत बढिय़ा! कई आर्ट रीस्टोरर किसी खास क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं और उसी क्षेत्र में काम करते हैं। चाहें तो किसी खास आर्ट मूवमेंट में काम कर सकते हैं, या फिर पेंटिंग या धातु, म्यूरल, इमारत, स्कल्पचर, पाण्डुलिपि, कागज में दक्षता हासिल की जा सकती है।

 

संस्थान और कोर्स:- इंस्टीच्यूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट, नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली ने आर्ट रीस्टोरेशन और कंजर्वेशन का फुल टाइम कोर्स शुरू किया है। साइंस में ग्रेुजएट इस कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। फाइन आट्र्स में जानकारी हो तो यह उम्मीदवार के लिए बढिय़ा है। एप्टिच्यूड टेस्ट के बाद ही दाखिला मिलता है। मास्टर्स डिग्री दो साल का कोर्स है, वहीं पीएचडी पांच साल का। इस संस्थान से शार्ट-टर्म सर्टिफिकेट कोर्स इंडियन आर्ट एंड कल्चर और आर्ट एप्रिसिएशन में किया जा सकता है। कर्नाटक चित्रकला परिषद कालेज आफ फाइन आट्र्स आर्ट रीस्टोरेशन में दो साल का कोर्स आफर करता है। यह एक वोकेशनल कोर्स है, यह जॉब ओरिएंटेड सर्टिफिकेट कोर्स है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज -इनटैक- ने कुछ प्रशिक्षित लोगों के साथ मिलकर रीस्टोरेशन सुविधाएं स्थापित की हैं। यहां कंजर्वेशन, रीस्टोरेशन और प्रिजर्वेशन के क्षेत्र में ट्रेनिंग और वर्कशाप आयोजित की जाती हैं। निजी कलेक्टर्स और इंस्टीच्यूशंस को यह संस्था रीस्टोरेशन और कंजर्वेशन सुविधाएं भी उपलब्ध कराती है।

 

जॉब कहां:- देश के म्यूजियम में आर्ट रीस्टोरर्स और कंजर्वर्स की मांग बढ़ी है। नेशनल म्यूजियम सेंटर और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज आर्ट रीस्टोरेशन में शामिल है। लखनऊ, दिल्ली और कोलकाता स्थित नेशनल म्यूजियम न केवल अपने बल्कि अन्य राज्यों के म्यूजियम की कलाकृ तियों की देखभाल करते हैं। निजी कलाकृतियों का रीस्टोरेशन या कंजर्वेशन तभी लिया जाता है, जब उक्त कलाकृति नेशनल हेरिटेज या महत्व की हो। नई दिल्ली स्थित इनटैक निजी लोगों के अलावा राज्यों के म्यूजियम को भी अपनी सेवाएं प्रदान करती है। इनटैक के केंद्र अभी अन्य कुछ राज्यों में भी खुले हैं। पहले जहां आर्ट लैबोरेट्री केवल नई दिल्ली, कोलकाता और बड़ौदा में थी, वहीं अब अन्य राज्यों में भी है। होटल, स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी, बैंक, पुरानी कंपनियां, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा में भी प्रशिक्षित लोगों की मांग बढ़ी है ताकि वहां की कलाकृतियों की ठीक से सार-संभाल हो सके। कई लाइब्रेरी तो अपने लिए अलग से रीस्टोरर और कंजर्वेटर रखती हैं ताकि वहां की पाण्डुलिपियां और अन्य कलाकृतियों ठीक रहें।

 

फीस/सेलरी की बात:- इस काम में आने वाली लागत की वजह से यह क्षेत्र काफी महंगा है। किसी भी पेंटिंग के रीस्टोरेशन और कंजर्वेशन में लाखों रुपये का खर्च आता है। रीस्टोरर और कंजर्वेटर की फीस काम और समय पर निर्भर करती है। एक औसत रीस्टोरर सालाना दो से तीन लाख रुपये तो कमा ही सकता है। वहीं अनुभवी व्यक्ति प्रति माह 50,000 रुपये कमा लेता है। इस क्षेत्र में कमाई व्यक्ति की अपनी दक्षता और गुणवत्ता पर निर्भर है।

Print Friendly, PDF & Email
AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE

Related Articles

AD
Back to top button