कविता

बालिका दिवस पर विशेष 

मेरी बेटी  फूल सी कोमल,  सुंदर सुकोमल  एक छोटी सी कलिका,  मेरे आंगन में अवतरित हुई l

मेरी बेटी
फूल सी कोमल,
सुंदर सुकोमल
एक छोटी सी कलिका,
मेरे आंगन में अवतरित हुई l
कहां-कहां की आवाज करती हुई,
हाथ पैर चलाने लगी l
मेरी मां ने सुना,
फिर दाई से पूछा –
क्या हुआ है री?
उसने कहा-
यह तो  छऔना है l
खुशी के मारे मां, झूम उठी l
भागी- भागी पतिदेव के पास पहुंची l
बोली-
अजी सुनते हो !
कुलदीपक आ गया है l
वह बोले,
जीवन सुखमय हो l
लौट कर आई तो,
मानौ पहाड़ टूट पड़ा है l
जब दाई ने पुकारा माई!
सुंदर सी गुड़िया है l
फिर क्या था,
बस रोना ही बाकी था l
सारे घर को,
मानो सांप  सूंघ गया है l
फिर
वक्त की नजाकत को मैंने पहचाना l
इस तरह का आचरण करता क्यों है जमाना l
सोचना पड़ेगा एक दिन,
हृदय में हर किसी को l
बेटियों की ललक,
क्यों नहीं है सभी को l
जब कन्या इस धरती पर,
जन्म ही न लेगी l
तो बेटी के लिए बहू,
फिर कहां से मिलेगी?
                      मौलिक एवं स्वरचित 
रामसेवक वर्मा , विवेकानंद नगर पुखरायां कानपुर देहात 
उत्तर प्रदेश, भारत, Ph- 9454344282, whatsapp 
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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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