कानपुर देहात

अपने बच्चों के भविष्य से खेल रहे अभिभावक

सरकारी विद्यालयों पर निजी स्कूल भारी पड़ रहे हैं। सरकार समग्र शिक्षा अभियान के तहत सरकार भले ही करोड़ों रुपये खर्च कर रही है बावजूद निजी स्कूलों का पलरा भारी दिख रहा है। वहीं यह भी बात सामने आ रही है कि बहुत ऐसे छात्र हैं जो पढ़ते निजी विद्यालयों में हैं लेकिन उनका नामांकन सरकारी विद्यालय में भी है।

राजेश कटियार ,कानपुर देहात। सरकारी विद्यालयों पर निजी स्कूल भारी पड़ रहे हैं। सरकार समग्र शिक्षा अभियान के तहत सरकार भले ही करोड़ों रुपये खर्च कर रही है बावजूद निजी स्कूलों का पलरा भारी दिख रहा है। वहीं यह भी बात सामने आ रही है कि बहुत ऐसे छात्र हैं जो पढ़ते निजी विद्यालयों में हैं लेकिन उनका नामांकन सरकारी विद्यालय में भी है।

अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य का ख्याल ना करते हुए लालचबस ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके बच्चों को मुफ्त में सभी पाठ पुस्तकें मिल जाती हैं और उनके खाते में 1200 रूपये भी पहुंच जाते हैं जोकि उन्हें प्राइवेट स्कूल की फीस अदा करने के काम आते हैं। एक वजह यह भी है कि सरकार ने शिक्षकों को इतना ज्यादा काम दे दिया है कि वह उसी में लगे रहते हैं, जिस कारण स्कूल में बच्चों को कम समय दे पाते हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि लोगों की ऐसी मानसिकता भी बन गई है कि सरकारी स्कूल से बेहतर पढ़ाई व माहौल निजी स्कूलों में मिलता है। इसके अलावा कुछ अभिभावक निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाना स्टेटस सिंबल समझते हैं जिस कारण वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं।

परिषदीय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे ड्रेस के साथ ही जूता मोजा एवं बैग लेकर आएं। इसके लिए सरकार उन्हें 1200 रुपये देती है। इतना ही नहीं प्रत्येक वर्ष बच्चों को सभी पाठ्य पुस्तकें मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती हैं। इस कारण से कई चालाक अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूल में करवा देते हैं और अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं।

नई चुनौतियों में फंसे परिषदीय स्कूलों के शिक्षक –

परिषदीय स्कूलों के शिक्षक इन दिनों नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह चुनौती उन चालाक अभिभावकों से निपटने की हैं जिन्होंने अपने बच्चों का नामांकन उनके विद्यालय के साथ प्राइवेट स्कूलों में भी करा रखा है। विडंबना यह भी है कि एक बार वेरीफाई करने के बाद प्रेरणा पोर्टल पर ऐसे बच्चों का नाम हटाने के लिए डिलीट का विकल्प भी नहीं आता है।

अप्रैल में नए सत्र की शुरुआत होते ही बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी शिक्षकों पर दबाव डालते हैं कि अगली कक्षा में गए बच्चों को तत्काल वेरीफाई किया जाए। वह शिक्षकों को यह पता लगाने का भी मौका नहीं देते कि नवीन सत्र में कितने बच्चे दूसरे स्कूलों में जाने वाले हैं। अप्रैल में ही छात्रों के वेरीफिकेशन के बाद डिलीट का आप्शन समाप्त हो जाता है। नई मुसीबत तब आती है जब तमाम अभिभावक अप्रैल की बजाए जुलाई में अपने बच्चों का नामांकन प्राइवेट स्कूलों में करा देते हैं। पता चलने के बावजूद शिक्षक इन बच्चों को प्रेरणा पोर्टल से डिलीट नहीं कर पाते हैं।

 

अभिभावक बनाते हैं बहाने-

कई शिक्षक बताते हैं कि दूसरे स्कूलों में नामांकन कराने वाले बच्चों की जानकारी दूसरे स्रोतों से मिलने पर जब अभिभावक से इन बच्चों के बारे में पूछा जाता है तो वे झूठ बोलते हैं। कभी कहते हैं कि उनका बच्चा नानी के घर गया है तो कभी कहते हैं कि बीमार है। ऐसा करके वे काफी दिन व्यतीत कर देते हैं।

हर समय रहना चाहिए डिलीट का विकल्प-

शिक्षकों की मांग है कि शिक्षकों के पास दूसरे स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का नाम अपने स्कूल से डिलीट करने का विकल्प हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए। ऐसा न होने का फायदा अभिभावक उठा रहे हैं और शिक्षक कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

Author: Pranshu Gupta

Pranshu Gupta

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