कानपुर देहात,अमन यात्रा : जिला कृषि अधिकारी डॉ0 उमेश कुमार गुप्ता ने बताया कि परम्परागत कृषि विधियाँ यथा कतार में वुआई, फसल चक्र, सहफसली खेती, ग्रीष्मकालीन जुताई आदि कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन करने के लिए महत्वपूर्ण है। इनको अपनाने से जल, वायु, मृदा व पर्यावरण प्रदूषण व्यापक में कमी होती है। कीट एवं रोग नियंत्रण की आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन(आई.पी.एम.) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है। रबी फसलों के कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी है। ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई व जून के महीने में की जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई का मुख्य उद्देश्य एवं उससे लाभ निम्नवत् हैं-
1.ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ती है जो फसलों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
2.खेत की कठोर परत को तोड़कर मृदा को जड़ों के विकास के लिए अनुकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है।
3.खेत में उगे हुए खरपतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं तथा जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है।
4.मृदा के अन्दर छिपे हुए हानिकारक कीड़े, मकोड़े, उनके अण्डे, लार्वा, प्यूपा एवं खरपरवारों के बीज गहरी जुताई के बाद सूर्य की तेज किरणों के सीधे सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों पर कीटनाशकों एवं खरपतवारनाशी रसायनों का कम उपयोग करना पड़ता है।
5.गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु, कवक, निमेटोड एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते हैं जो फसलों में मृदा जनित रोग के प्रमुख कारक होते हैं। निमेटोड का नियंत्रण करने हेतु कीटनाशकों का प्रयोग खर्चीला होता है परन्तु ग्रीष्म कालीन जुताई से इनका नियंत्रण बिना किसी अतिरिक्त लागत के हो जाता है।
6.मृदा में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। जिससे फसलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में लाभ मिलता है।
7.मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोड़े गये हानिकारक रसायनों के अपघटन में सहायक होती है।
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