कानपुर, अमन यात्रा । गंगा की धारा के साथ चलने वाले इस शहर की रफ्तार भी अजब है। मोहल्लों की नुक्कड़बाजी, चौराहों के अड्डे, देर रात तक चाय की दुकानों पर चलने वाली चर्चा, जाम के दौरान भी एकदूसरे पर चिकाई करने की आदत इसे बाकी शहरों से कुछ अलग ही बनाती है। दिल्ली-हावड़ा रूट के सबसे बड़े औद्योगिक व कारोबारी शहर होने के चलते सेंट्रल स्टेशन पर चौबीस घंटे ट्रेनों की होने वाली आवाजाही और घंटाघर चौराहे की चहल-पहल के साथ ही यह सबकुछ अचानक 22 मार्च 2020 को जनता कफ्र्यू के लगते ही शांत हो गया था। यह जिंदगी बचाने की कवायद थी। इसलिए सभी ने इसे पूरी तरह माना भी। हालांकि किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि कभी कुछ ऐसा होगा जो उन्हेंं अपने घरों में ही कदम रोकने के लिए मजबूर कर देगा। इसके बाद 23 व 24 मार्च को प्रदेश सरकार ने दो दिन का लॉकडाउन किया और 25 मार्च से केंद्र सरकार ने देशभर में लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
पहले कभी कफ्र्यू में भी ना रहा इतना सन्नाटा
जनता कफ्र्यू को खुद जनता ने स्वीकार किया था। संवेदनशील माने जाने वाले शहर में इससे पहले भी तमाम मौकों पर कफ्र्यू लगा। 1984 और 1992 में शहर में करीब-करीब सभी थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू लगा दिया गया था, लेकिन तब भी इतना सन्नाटा नहीं था। लोग किसी तरह घरों से निकलने का प्रयास करते रहते थे लेकिन इस बार यह स्थिति थी कि लोगों ने खुद अपने घरों के गेट पर ताले डाल दिए थे।
सेंट्रल स्टेशन की थम गई धड़कन
सेंट्रल स्टेशन की तो यह स्थिति है कि शायद कभी कोई 10 मिनट ऐसे गुजरते हों जब स्टेशन पर ट्रेन ना आती हो। प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने के इंतजार में बैठे सैकड़ों यात्रियों के बीच किसी ट्रेन के आते ही उससे उतरने वाले यात्रियों की भीड़ उसी रेले में गायब हो जाती थीं। लॉकडाउन में ट्रेने बंद रहीं।
घंटाघर की जिंदादिली हुई गायब
दिन में कई बार जाम का सामना करने वाले घंटाघर के आसपास जैसे पूरा शहर बसता है। रात में थोड़ा शांत तो हो जाता है लेकिन यह चौराहा कभी सोता नहीं है। स्टेशन पर आने वाली सवारियों, चाय की दुकानों पर जुटी भीड़ इस चौराहे को जीवंत रखती है लेकिन जनता कफ्र्यू के बाद इस चौराहे की जीवंतता जैसे खत्म हो गई। सन्नाटा इतना था कि घंटाघर पर खड़े होकर माल रोड तक देख लें।
फैक्ट्रियों की मशीनें रहीं शांत
शहर में अब भारी उद्यम तो नहीं हैं लेकिन लघु और मध्यम श्रेणी के उद्यम काफी हैं। दादा नगर इंडस्ट्रियल एरिया, पनकी इंडस्ट्रियल एरिया, मंधना इंडस्ट्रियल एरिया, रूमा इंडस्ट्रियल एरिया, फजलगंज आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां हजारों की संख्या में लोग काम करते हैं। इनके गेट बंद हुए तो बिल्कुल सन्नाटा छा गया था।
गिर गए थे शटर, बाजारों में था सन्नाटा
शहर में मोहल्लों के बाजार तो हैं ही, लेकिन इससे हटकर थोक बाजार भी हैं। नयागंज, जनरलगंज, हटिया, बिरहाना रोड, मेस्टन रोड, मनीराम बगिया, कलक्टरगंज, लाटूश रोड ऐसे बाजार हैं जिनकी अपनी विशेषता है। यहां जो सामान बिकता है, उसे खरीदने दूसरे शहर से भी लोग आते हैं। वह चाहे कपड़ा हो या लोहा, मसाला हो या मशीन का सामान। इन बाजारों में हजारों की भीड़ रहती है, लेकिन 22 मार्च से यहां भी सन्नाटा छा गया था।
दिखा समाजसेवा का नया रूप
रोज कमाकर अपना परिवार चलाने वालों के सामने खाने का संकट आया तो शहर के संगठनों का नया रूप सामने आया। जगह-जगह भोजन बनने और बांटा जाने लगा। लक्ष्य था, बच्चा हो या बुजुर्ग कोई भूखा ना सोए। भोजन बनाने के कैंप लगे तो लोगों ने अपने नाम बताए बिना उसमें सहयोग भी दिया। हमेशा ट्रकों की लाइन से उलझने वाला हाईवे शांत था, लेकिन उस पर पैदल चलने वालों का रेला कुछ ही दिनों में शुरू हो गया। कोई महाराष्ट्र से चला आ रहा था तो कोई गुजरात से। पैरों में छाले पड़ गए थे। अपने शहर में रहने वालों का पेट भरने वाले शहर ने एक बार फिर सेवा का वह भाव दिखाया जो जीवन में शायद दोबारा देखने को ना मिले। जो नंगे पैर थे, उन्हेंं चप्पल पहनाईं। भोजन कराया। जो बीमार थे, उन्हेंं दवाएं दीं।