लखनऊ, अमन यात्रा । प्रदेश की योगी सरकार बाराबंकी का लोधेश्वर महादेवा मेला और सहारनपुर का मां शाकुंभरी माता मंदिर मेला सहित छह स्थानीय मेलों का खर्च उठाएगी। सरकार इन मेलों में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बजट में इसकी व्यवस्था करने जा रही है। सरकार शीघ्र ही इनका प्रांतीयकरण करेगी। इससे मेला सुव्यवस्थित तरीके से संपन्न हो सकेगा।
प्रदेश सरकार ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं पर्यटन की ²ष्टि से महत्वपूर्ण मेलों का प्रांतीयकरण कर उनका खर्च खुद उठाती है। इसी के तहत छह और मेलों का खर्च सरकार उठाने जा रही है। सरकार इन मेलों के प्रांतीयकरण के लिए प्रस्ताव तैयार करवा रही है। शीघ्र ही इन्हें कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।
सरकार ने गाजियाबाद के महाकौथिग मेला, सहारनपुर की मां शाकुंभरी माता मंदिर मेला, बाराबंकी का लोधेश्वर महादेवा मेला, बलिया का ददरी मेला, हाथरस का दाऊ जी महाराज मेला और महोबा के गोवर्धन मेला चरखारी के लिए संबंधित जिलाधिकारियों से प्रस्ताव मांगा है। इससे पहले भी योगी सरकार मीरजापुर की विंध्याचल शक्ति पीठ, नैमिषारण्य की मां ललिता देवी व देवीपाटन की पाटेश्वरी शक्ति पीठ मेला का प्रांतीयकरण कर चुकी है। हरदोई के बेरिया घाट मेला का भी खर्च अब सरकार खुद उठाती है।
मां शाकुंभरी : यह शक्तिपीठ सहारनपुर के पर्वतीय भाग में है। यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है। उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन होता है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में मां चामुण्डा देवी, मां वज्रेश्वरी देवी, मां ज्वाला देवी, मां चिंतपुरणी देवी, मां नैना देवी, मां मनसा देवी, मां कालिका देवी, मां शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। नौ देवियों में मां शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी मां का है।
लोधेश्वर महादेवा : लोधेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी में रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर है। लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। फाल्गुन का मेला यहाँ खास अहमियत रखता है। पूरे देश से लाखों श्रद्धालु यहां कांवर लेकर शिवरात्रि पर शिवलिंग पर जल चढाते हैं। माना जाता है की वेद व्यास मुनि की प्रेरणा से पांडवों ने रुद्र महायज्ञ का आयोजन किया और तत्कालीन गंडक इस समय घाघरा नदी के किनारे कुल्छात्तर नमक जगह पर इस यज्ञ का आयोजन किया। महादेवा से दो किलोमीटर उत्तर, नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं। उसी दौरान इस शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी।