राजेश, कानपुर देहात : देश में लंबे समय से नई पेंशन योजना को लेकर उठा-पठक चल रही है। नई पेंशन योजना और पुरानी पेंशन योजना को लेकर बहस का सिलसिला राजनीतिक गलियारों में बहस का मुद्दा बना हुआ है। हाल में कई राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू भी किया गया है। यूपी में पहली अप्रैल 2004 से नई राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की गई है जिससे सरकारी कर्मचारियों में खासी नाराजगी है क्योंकि सांसद, विधायक और मंत्रियों पर यह नियम लागू नहीं है। उन्हें पुरानी पेंशन ही मिल रही है। विधायक से यदि कोई सांसद बन जाए तो उसे विधायक की पेंशन के साथ ही लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता भी मिलता है। इसी तरह राज्यसभा सांसद चुने जाने और केंद्रीय मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन-भत्ता और विधायक-सांसद की पेंशन भी मिलती है जबकि सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को एक ही पेंशन मिलती है वो भी एनपीएस वह भी 33 साल की नौकरी पूरी करने के बाद। वहीं, नेताओं को एक दिन का विधायक या सांसद बनने पर भी पेंशन की पात्रता होती है। यह जानकारी सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना से मिली है। एडवोकेट पूर्वा जैन की मांग है कि संविधान के मुताबिक समानता के अधिकार के कानून का पालन हो। जनप्रतिनिधियों की पेंशन के लिए भी शासकीय सेवकों की तरह गाइडलाइन बनाई जाए। कम से कम पांच साल का कार्यकाल अनिवार्य किया जाए। साथ ही वे अंत में जिस पद पर रहे, उसी की पेंशन उन्हें मिले।
मंत्री या निगम-मंडल में अन्य सरकारी पदों पर रहते हुए वेतन के साथ पुराने पदों की पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे में देश के माननीयों के लिए भी नियम-कायदे बनाए जाने चाहिए।
सरकारी कर्मचारियों के लिए एनपीएस व्यवस्था-
सांसद, विधायक भले ही कितनी पेंशन और वेतन-भत्ते एक साथ लें लेकिन सरकार ने 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पेंशन देना बंद कर दिया है। इसकी जगह एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) लागू की है। 2004 से पहले वाले कर्मचारियों को जहां वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में मिल रही है लेकिन अब अधिकतम 10 फीसदी राशि ही मिल पाएगी। पुरानी पेंशन बंद होने से यूपी समेत देशभर के कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि एनपीएस केवल झुनझुना है, जाे रिटायर होने के बाद उनके लिए अपर्याप्त रहेगी।
पहले पांच साल कार्यकाल पर ही पेंशन का था नियम-
90 के दशक से पहले नियम था कि जबतक पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं होगा तब तक विधायकों को पेंशन नहीं मिलेगी। हालांकि नियम में बदलाव के बाद अब एक दिन भी विधायक और सांसद रहने पर जनप्रतिनिधि पेंशन के हकदार हो जाते हैं।
कौन कितनी पेंशन ले रहा है, इसका रिकॉर्ड ही नहीं-
माननीयों के लिए शासकीय सेवकों की तर्ज पर एक वेतन-एक पेंशन का नियम लागू नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि कोई नेता कितनी बार कौन सा चुनाव जीता और कितनी पेंशन ले रहा है, इसका भी रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। यानी कोई नेता पूर्व सांसद, विधायक की हैसियत से पेंशन लेने के दौरान मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद का वेतन-भत्ता भी दिया जाता है।
सांसद-विधायकों के वेतन-पेंशन निर्धारण का हो नियम-
इसके लिए कमेटी या बोर्ड बनाया जाना चाहिए जिसके पास देश के हर विधायक और सांसद का पूरा रिकॉर्ड हो ताकि वह देश में कहीं पर भी वेतन या एक से अधिक पेंशन लाभ न ले सकें। कम से कम पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले नेता को ही पेंशन की पात्रता होना चाहिए। राज्य और केंद्र के संसदीय सचिवालय को लिंक करना चाहिए ताकि कोई पूर्व विधायक या सांसद मंत्री बनने या निगम-मंडल में अध्यक्ष बनने पर एक से अधिक लाभ न ले सके। कुछ नेता विधायक, सासंद और मंत्री रहने के बाद राज्यपाल, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति बन जाते हैं। इसी तरह कई नेता विभिन्न बोर्ड, निकाय, मंडल के साथ ही यूनिवर्सिटी में कुलपति से लेकर राष्ट्रीय संस्थानों के चेयरमैन तक हो जाते हैं। इन्हें पुराने पदों की पेंशन के साथ ही वर्तमान पदों का वेतन भी मिलता है जो संविधान में निहित समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। इन्हें भी शासकीय सेवकों की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। इनकी भी पुरानी पेंशन बंद कर देनी चाहिए और नई पेंशन का लाभ ही दिया जाना चाहिए।
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