उज्जैन,मध्य प्रदेश, अमन यात्रा : विश्व विख्यात सन्त बाबा जयगुरुदेव के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जीते जी प्रभु प्राप्ति का मार्ग नामदान देने के इस धरती पर एकमात्र अधिकारी, प्रकट सन्त, न केवल मुक्ति-मोक्ष की राह दिखाने वाले बल्कि उस पर हर तरह से कमजोर अबोध जीवों को चलाने वाले और मंजिल तक पहुंचाने वाले, इस समय के सर्व समरथ सर्व व्यापी सर्व शक्तिमान, भक्तों की पल-पल संभाल करने वाले, अध्यात्म की थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों कराने वाले, सफलता प्राप्त करने के नित्य नए मौके, प्रेरणा, बल देने वाले वक़्त के मौजूदा सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने तपस्वी भंडारा कार्यक्रम में भारत समेत 13 देशों से आये लाखों भक्तों को 28 मई 2022 सायंकालीन बेला में उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इस धरती पर आए सभी महापुरुषों से ज्यादा मेहनत, काम गुरु महाराज ने किया और सबसे ज्यादा जीवों को अपना कर, समझा कर, प्यार देकर, अंतरात्मा की सफाई करके नाम रूपी रत्न दिया, आभास करा दिया कि नाम रूपी मणि तुम्हारे अंदर ही है। ये ऐसी जड़ी है जिससे अंदर और बाहर दोनों में उजाला रहता है। अंदर में और इस संसार में भी अंधेरा है लेकिन जब इस घट के अंदर से बाहर जीवात्मा निकलती है तब वहां कोई अंधेरा, कोई रात नहीं होती। उजाला ही उजाला, प्रकाश ही प्रकाश है। नाम रूपी जड़ी, अंजन बहुत दिनों से बंद दिव्य दृष्टि पर लगाई तब खुल गयी, रास्ता मिल गया और उसी रास्ते से जीवात्माएं अपने घर, अपने मालिक के पास पहुंच गयीं। जहां से अब ये नीचे उतरने वाली नहीं हैं। जैसे बच्चा बाप के गोद में पहुंचने के बाद यदि दूसरा कोई उसको लेना चाहे तो नहीं जाता है। ऐसे ही अपने सच्चे आध्यात्मिक पिता की गोद में जीवात्मा बैठ जाती है तो नीचे नहीं आती। गुरु महाराज जैसे सन्त के लिए ही कहा गया है-
सन्तों की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावन हार ।।
सन्त अनंत उपकार करते हैं, जिसकी कोई सीमा नहीं है। अनंत मतलब कोई अंत नहीं है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। लोचन मतलब आंख अंतर की। अनंतो की आंख खोला, उसकी गणना नहीं की जा सकती। बहुत लोगों की खुली। अंदर की आंख से अनंत को, अनामी को देखा जिसका कोई नाम नहीं है, वहां पहुंच गए।
जीते जी प्रभु प्राप्ति के लिए गुरु महाराज ने बहुत मेहनत किया
सबसे आगे गुरु महाराज रहे। एक छोटे से गांव में जन्म लिए। वहां खाने पहनने की कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन देखो ऐसा संयोग बनता है। किस तरह से कुदरत एक तरह से सन्त बनाती है। मां के पेट में ही बनकर बाहर निकलते हैं। जब पैदा होते हैं तब सन्त नहीं रहते हैं। लेकिन सन्तों को त्याग करना जरूरी होता है। अगर त्याग न करें तो दूसरे को नहीं करा सकते। हर तरह से भूखा, प्यासा, नंगा रहना, तपस्वी जीवन बिताना पड़ता है। माता-पिता बचपन में चले गए लेकिन माता बोल कर गई थी कि मनुष्य शरीर भगवान की प्राप्ति के लिए मिला है, भगवान की प्राप्ति बेटा करना। निकल गए। बहुत जगह गए, कहीं कुछ नहीं मिला। मेहनत बहुत किया। अनुभव तो जीवन का बहुत हुआ। आश्रमों, मठों पर छोटी से छोटी सेवा करते। बर्तन धोते-धोते हाथ में गांठे पड़ गयी लेकिन कुछ नहीं मिला। निराश हो गए तो कहते हैं- जब आदमी निराश हो जाता है तब परमात्मा मदद करता है।
आसानी से मिली चीज की कीमत आदमी नहीं लगाता है
लेकिन मेहनत करके कोई चीज प्राप्त की जाए तो उसकी कीमत आदमी लगता है। मुफ्त की दवा जल्दी लोग खाते नहीं, भूल जाते हैं। जब पैसा दे कर लाते हैं तो मन लगा रहता है। निराशा जब हुई तब आशा बंधी, मिल गए, दादा गुरु जी की आकृति दिखाई पड़ गयी, पहुंच गए, नामदान लिया और लग गए।
अपने अंदर की सबसे बड़ी कमी और उसे दूर करने का उपाय
प्रेमियों! हमारे-आपके अंदर यही कमी है। आप नामदान लेते हो लेकिन उस काम में लगते नहीं हो। उसको तो ऐसे ही समझ लेते हो जैसे और कनफूका गुरु से कान फूँकवा, कंठी बंधवा, छाप लगवा लेते हैं और कहते हैं मैं गुरमुख हूँ, मैंने मंत्र ले लिया है, मैं निगुरा नहीं हूं। लेकिन उसका फायदा नहीं उठा पाते। जितना वो लोग बताते हैं उतना ही अगर करने लग जाए तो कुछ तो धार्मिक भावना जागेगी। इसलिए वो केवल नाम मात्र के लिए नामदानी, दीक्षित रह जाते हैं, बाकी काम नहीं कर पाते। लेकिन आदमी को अगर किसी लक्ष्य पर पहुंचना, आगे बढ़ना है, उसका फायदा देखना है तो करना चाहिए। चलो अभी तक आपने किया सो किया। लेकिन आज संकल्प करो कि हम आज ही से (जो साधना आपको नामदान देते समय बताई गई, उसे) करेंगे।
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