पुखरायां की दहाड़: काली बांहें बनीं इंसाफ की पुकार, आतंकवाद थर्राया
आज पुखरायां की फिज़ा में सिर्फ अज़ान की सदा नहीं गूंजी, बल्कि गूंजी इंसाफ की वो बुलंद आवाज़ जिसने आतंकवाद के हर समर्थक के कलेजे को कंपा दिया।

- नमाज़ के बाद उमड़ा ईमान का सैलाब, हर चेहरे पर ग़म और गुस्से का लावा, कहा - "बेगुनाहों का कत्ल? ये इस्लाम नहीं, शैतानियत है!"
आज पुखरायां की फिज़ा में सिर्फ अज़ान की सदा नहीं गूंजी, बल्कि गूंजी इंसाफ की वो बुलंद आवाज़ जिसने आतंकवाद के हर समर्थक के कलेजे को कंपा दिया।
जुमे की नमाज़ के बाद मदनी मस्जिद से निकला जनसैलाब सिर्फ एक मजमा नहीं था, बल्कि काली पट्टियों से सजी बांहों का एक समंदर था – हर बांह पहलगाम के लहूलुहान पीड़ितों के लिए इंसाफ की मांग कर रही थी।
हर चेहरे पर दुख की गहरी छाया थी, तो आंखों में उस गुस्से की ज्वाला जो मानवता के दुश्मनों को राख कर देना चाहती थी। प्रदर्शनकारियों ने एक सुर में कहा कि पहलगाम में जो हुआ, वो सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं, बल्कि इंसानियत के चेहरे पर कालिख पोतने की नापाक कोशिश है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि इस्लाम शांति का धर्म है और किसी भी निर्दोष का खून बहाना सबसे बड़ा गुनाह है। “ये मुसलमान नहीं कर सकते, ये इंसान नहीं कर सकते, ये सिर्फ शैतान कर सकते हैं!” – ये अल्फाज़ हर जुबान पर थे।
पीड़ित परिवारों के दर्द को अपना दर्द बताते हुए, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि पूरा हिंदुस्तान उनके साथ खड़ा है। उन्होंने ऐसी बर्बर घटनाओं को किसी भी कीमत पर स्वीकार न करने का ऐलान किया। उनकी मांग थी कि इन कातिलों को ऐसी सजा मिले कि फिर कभी किसी मासूम की जान लेने की हिम्मत न करें।
खामोश बांहों पर बंधी काली पट्टियां एक शक्तिशाली संदेश दे रही थीं – जुल्म चाहे जितना भी गहरा हो, इंसानियत कभी खामोश नहीं रहेगी। “पहलगाम आतंकवाद मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद” के नारों ने आसमान चीर दिया, जो आतंकवादियों और उनके आकाओं के लिए एक खुली चुनौती थी। आज पुखरायां ने दिखा दिया कि इंसानियत के दुश्मनों के खिलाफ हर दिल एक साथ धड़कता है और हर बांह इंसाफ के लिए उठ खड़ी होती है।
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