दूसरों को उपदेश देने वाले स्वयं उसका अमल क्यों नहीं करते
मनुष्य की फितरत ही है कि वह दूसरों को भाषण बहुत देता है पर जब बात अपने पे लागू करने की बारी आती है तो वह पीछे हो जाता है।तुम ये कर लो, तुम्हें ऐसा करना चाहिए आदि आदि ऐसी उपदेशात्मक बातें दूसरों को देना आसान होता है। अक्सर आपने देखा होगा कि आपके नाते रिश्तेदार, व्यवहारी आपको तरह तरह का ज्ञान देंगे लेकिन अपने घर में या अपने बच्चों पर उसे लागू नहीं करेंगे

- दूसरों को उपदेश देना आसान है लेकिन स्वयं उसका पालन करना कठिन
कानपुर देहात। मनुष्य की फितरत ही है कि वह दूसरों को भाषण बहुत देता है पर जब बात अपने पे लागू करने की बारी आती है तो वह पीछे हो जाता है।तुम ये कर लो, तुम्हें ऐसा करना चाहिए आदि आदि ऐसी उपदेशात्मक बातें दूसरों को देना आसान होता है। अक्सर आपने देखा होगा कि आपके नाते रिश्तेदार, व्यवहारी आपको तरह तरह का ज्ञान देंगे लेकिन अपने घर में या अपने बच्चों पर उसे लागू नहीं करेंगे। मतलब तुम करोगे तो करेक्टर ढीला और वे स्वयं करेंगे तो रासलीला।
गोस्वामी तुलसीदास का लिखा कथन “पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।” आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि आदिकाल में था। दूसरों को उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन। वर्तमान समय में उपदेशक अधिक हैं अमलकर्ता नहीं। यदि व्यक्ति स्वयं आदर्शों का पालन करने लग जाए तो उसे उपदेश देने की जरूरत नहीं होगी। किसी को उसके कर्तव्य का बोध कराने से ज्यादा जरूरी है कि वह स्वयं कर्तव्यपरायण बनें। यदि हम आज अपने सामाजिक परिवेश को देखें तो उपदेश की कोई सीमायें नहीं रहीं।
समाज में दीन-हीन, दु:खी को देखकर कोई भी व्यक्ति उपदेशक बन जाता है क्योंकि उपदेश देने की प्रवृत्ति का उत्पन्न होना प्रकृति प्रदत्त है, इसके लिए किसी से भी कहने या सुनने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति अधिक समझ रखता है और समझ के कारण ही वह दूसरों को उपदेश देने में अपने आपको अधिक समझदार समझता है। मेरा तो मानना है कि जो उपदेश मैं खुद अमल में नहीं ला सकता उसके बारे में दूसरों को सलाह देने का अधिकार मुझे नहीं है। कोई खुद से नजरें कैसे मिलाये अगर वह दूसरों को शराब बुरी चीज है कहे और फिर स्वयं मदिरा पान करे हालांकि आजकल यह आम बात है। लोग खुद तो वही काम करते हैं मगर दूसरों को उसे करने से मना करते हैं। समाज में अधिकांश लोग उपदेश देना तो जानते हैं लेकिन वे स्वयं कभी उनका पालन नहीं करते इसीलिए कहा जाता है कि दूसरों को ज्ञान देने से पहले स्वयं ही उसका पालन करना सीखिए।
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