उत्तरप्रदेशकानपुर देहातफ्रेश न्यूज

मोहर्रम एक हरारत हैं जो पत्थर दिलों को भी पिघला सकती है

कानपुर देहात के अंतर्गत ब्लाक मलासा मोहम्मदपुर गाँव मे अन्जुमन हुसैनिया कदीम की जानिब से इमाम हुसैन अस की शहादत की याद में मोहर्रम का सिलसिला जारी है जो 10 मोहर्रम से चैहलुम तक जारी रहेगा।

ब्रजेन्द्र तिवारी, पुखरायां ।  कानपुर देहात के अंतर्गत ब्लाक मलासा मोहम्मदपुर गाँव मे अन्जुमन हुसैनिया कदीम की जानिब से इमाम हुसैन अस की शहादत की याद में मोहर्रम का सिलसिला जारी है जो 10 मोहर्रम से चैहलुम तक जारी रहेगा।मरहूम मोहम्मद हसन असकरी के इमाम बारगाह मे मजलिस को खिताब करते हुऐ मौलाना सदाकत हुसैन ने बताया  नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ कोे जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे। इमाम हुसैन को उस वक्त के मुस्लिम शासक यजीद के सैनिकों ने इराक के कर्बला में घेरकर शहीद कर दिया था। लिहाजा, 10 मोहर्रम को पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है। कर्बला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है। यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सिर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए।मोहर्रम एक हरारत हैं जो पत्थर दिलों को भी पिघला सकती है। मोहर्रम एक आन्दोलन हैं। भ्रष्टाचार, अत्याचार, अन्याय और बुराइयों के खिलाफ, वहीं मोहर्रम एक विद्यालय भी जहां अहिंसा, मानवाधिकार, प्रेम और मनुष्य से अच्छे व्यवहार का पाठ पढ़ाया जाता है।जो त्याग बलिदान और वफादारी का सबक सिखाती है। मुहर्रम का चाँद नुमुदार होते ही दिल महज़ून व मग़मूम हो जाता है। ज़ेहनों में शोहदा ए करबला की याद ताज़ा हो जाती है और इस याद का इस्तिक़बाल अश्क़ों की नमी से होता है।और दिल ख़ून के आँसू बहाने पर मजबूर हो जाता है। मजलिस मे हुस्न आलम।शत्रुघन सिंह ।फकरे आलम। दिल नवाज अली। हसीबुल हसन। आलम शिकोह। नूरे नजर।

Pranshu Gupta
Author: Pranshu Gupta

Related Articles

AD
Back to top button