यूपी में बसपा क्यों नहीं जीत पाई एक भी सीट, जानें पराजय का कारण
लोकसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है। चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को अपने इतिहास की सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा।अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति उल्टा पड़ गयी।बसपा उत्तर प्रदेश की 80 में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो सपा के साथ गठबंधन में बसपा को 10 सीटें मिली थी
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लखनऊ। लोकसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है। चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को अपने इतिहास की सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा।अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति उल्टा पड़ गयी।बसपा उत्तर प्रदेश की 80 में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो सपा के साथ गठबंधन में बसपा को 10 सीटें मिली थी। सियासी पंडितों का कहना है कि बसपा से इस चुनाव में ऐसे ही नतीजों की उम्मीद जताई जा रही थी, क्योंकि उनके पास पहले जैसा संगठन नहीं बचा है। इसके अलावा वह लगातार चुनाव हार रही है।
ज्यादातर प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे
अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति का उल्टा असर रहा। बसपा का परंपरागत वोटर्स जाटव समाज भी इस चुनाव में बसपा से दूर हो गया। 79 सीटों पर बसपा के ज्यादातर प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे हैं। सुरक्षित सीट पर कांग्रेस और सपा का जीतना भी बड़ा उदाहरण है। मायावती की उदासीनता के कारण उनके समाज के शिक्षित और युवा सदस्य उनसे नाराज दिख रहे हैं और एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं। कुछ जगहों पर उन्हें सपा या चंद्रशेखर आजाद और कांग्रेस में उन्हें अपनी उम्मीद नजर आती दिखी है।
गठबंधन नहीं कर की बड़ी गलती
बसपा के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बसपा ने इस बार गठबंधन नहीं करके सबसे बड़ी गलती की है। इसके बाद दूसरी बड़ी गलती आकाश आनंद को पद और प्रचार से हटाकर की है। इससे एक संदेश गया कि हम इस चुनाव में भाजपा की टीम के रूप में काम कर रहे हैं, जबकि ऐसा था नहीं। भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और संविधान बदलने वाला प्रचार तेजी से काम कर रहा था। इसका भी नुकसान बसपा को हुआ, जिससे दलित वोट बिखर गया। उसका फायदा विपक्षी दलों को हुआ। जितनी भी सीट सपा और कांग्रेस ने जीती हैं, उनमें बसपा के वोट बैंक ने बहुत काम किया है। इस पर समीक्षा करने की जरूरत है।
बसपा भी अब सीजनल हो गई है
बता दें कि बसपा मुखिया मायावती की जिद ने बसपा को इस हालत में पहुंचा दिया है।बसपा अब सीजनल हो गई है।सिर्फ चुनाव के समय ही मायावती निकलती हैं और कार्यकर्ताओं से दूर होती जा रही हैं।विपक्ष के साथ न मिलकर चुनाव लड़ना मायावती के लिए खतरा बन गया।बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पूरी तरह फेल रहे।सपा ने इस फार्मूले का ढंग से इस्तेमाल किया और उसे सफलता भी मिली। 2019 में जीते हुए ज्यादातर सांसदों को मायावती ने टिकट नहीं दिया। उसका खामियाजा भुगतना पड़ा।