सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के खिलाफ केवल सरकार की आलोचना करने के आधार पर आपराधिक मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी है।
- पत्रकारिता की स्वतंत्रता को मिली नई उड़ान: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- पत्रकारों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई पर रोक: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के खिलाफ केवल सरकार की आलोचना करने के आधार पर आपराधिक मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी है। यह फैसला पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनाया गया, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में एक कथित रिपोर्ट को लेकर अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।
क्या था मामला?
अभिषेक उपाध्याय ने ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की थी। इस खबर के बाद उनके खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353, 197(1)(c), 356(2), 302 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार संरक्षित हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना माना जाता है, पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए।
फैसले का महत्व
यह फैसला पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। इससे पत्रकारों को बिना डरे सत्ता और सत्ता में बैठे लोगों की आलोचना करने का हौसला मिलेगा। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट पत्रकारों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए प्रतिबद्ध है।
आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है। इस दौरान कोर्ट यह तय करेगा कि क्या अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को पूरी तरह से रद्द किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इससे न केवल पत्रकारों बल्कि सभी नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मजबूत होगी। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि भारत में लोकतंत्र जीवंत है और न्यायपालिका अपनी भूमिका निभा रही है।
अतिरिक्त जानकारी
- इस फैसले का असर अन्य मामलों पर भी पड़ सकता है, जहां पत्रकारों के खिलाफ उनकी रिपोर्टिंग के कारण मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
- यह फैसला सरकार के लिए एक चेतावनी है कि वह पत्रकारों को डराने और धमकाने के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं कर सकती है।
- यह फैसला भारत में मीडिया की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ी जीत है।
नोट- यह खबर सूचना के उद्देश्य से है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।