राजेश कटियार ,कानपुर देहात। शिक्षक के अवकाशों पर लगातार उठ रही उंगलियां दरअसल एक गहरी समस्या को जन्म देती हैं। समाज में यह धारणा तेजी से बढ़ती जा रही है कि शिक्षक का काम केवल कक्षा में पढ़ाना ही नहीं है बल्कि वह 24 घंटे का कर्मचारी है और अवकाश में उसे कोई छुट्टी नहीं मिलनी चाहिए। मगर क्या हम भूल रहे हैं कि शिक्षक भी इंसान हैं जो मानसिक और शारीरिक रूप से भी तरोताजा होने की आवश्यकता है। शिक्षक के अवकाशों पर प्रश्नचिह्न लगाना मानो उसे आराम का साधन मानकर उसका दुरुपयोग करने का आरोप हो परंतु सच्चाई यह है कि शिक्षक के लिए अवकाश केवल आराम का समय नहीं बल्कि वह आत्मनिरीक्षण और नवाचार के लिए एक अमूल्य अवसर होता है। आज जब शिक्षकों पर भारी कार्यभार डालकर उन्हें हर छोटे-बड़े काम में उलझाया जा रहा है तब अवकाशों को कम करना या समाप्त कर देना उनकी मानसिक और शैक्षिक स्वतंत्रता पर चोट के समान है। शिक्षक का अवकाश महज छुट्टी नहीं बल्कि उसके विकास और नए विचारों को आकार देने का समय होता है। यदि शिक्षकों को लगातार काम में उलझा दिया जाए तो वे न केवल थकान का शिकार होते हैं बल्कि उनकी रचनात्मकता और प्रेरणा भी घट जाती है। इस परिस्थिति में शिक्षक जो भविष्य की पीढ़ियों को आत्म-निर्भर और सृजनशील बनाने का उत्तरदायित्व रखते हैं वे स्वयं ही आत्म-विश्वास और मानसिक संतुलन खो सकते हैं।
दूसरी तरफ अवकाश समाप्त कर देना या उसमें कटौती करना शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षण गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है। लगातार काम के दबाव में शिक्षक न केवल थक जाते हैं बल्कि उनका मनोबल भी गिर जाता है। इससे उनकी सृजनात्मकता खत्म हो जाती है जो सीधे छात्रों पर प्रभाव डालता है। छात्रों का मानसिक उत्पीड़न तब शुरू होता है जब शिक्षक खुद दबाव में होते हैं और उनकी शिक्षा गुणवत्ता में गिरावट आती है। छात्रों के दृष्टिकोण से देखें तो शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य सीधे उनके सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि शिक्षक थका हुआ चिंतित या आत्म-विश्वासहीन होगा तो छात्रों पर भी उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। शिक्षक का मानसिक संतुलन और ऊर्जा ही वह माध्यम है जिससे वह छात्रों में उत्साह और आत्म-विश्वास का संचार करता है। जब शिक्षक को अवकाश नहीं मिलता तो वह पूरी तरह से थकावट और मानसिक दबाव का शिकार हो जाता है जिससे वह छात्रों की जरूरतों को समझने और उन्हें सही मार्गदर्शन देने में असफल हो सकता है। शिक्षक पर बढ़ती जिम्मेदारियां जैसे चुनाव से जुड़े कार्य, प्रशासनिक आदेशों का पालन, आंकड़ों का संकलन और अन्य अतिरिक्त गतिविधियां उसे एक मशीन की तरह बनाती जा रही हैं। यह मानसिक उत्पीड़न न केवल शिक्षकों के लिए हानिकारक है बल्कि इसका सीधा असर छात्रों पर भी पड़ता है। अगर शिक्षक का मानसिक संतुलन बिगड़ता है तो वह अपनी कक्षा में वैसा योगदान नहीं दे सकता जिसकी आवश्यकता है। यह स्थिति छात्रों को भी मानसिक रूप से प्रभावित करती है क्योंकि वे अपने शिक्षक से वह ऊर्जा और प्रेरणा नहीं पा सकते जो उन्हें चाहिए। अवकाशों का सही उपयोग शिक्षक को रचनात्मक और मानसिक रूप से सशक्त बनाने का अवसर देता है। यह उनके लिए आत्म-निरीक्षण नई शिक्षण विधियों का अध्ययन और स्वयं को बेहतर बनाने का समय होता है। अगर शिक्षकों को यह समय नहीं दिया जाता तो वह न केवल अपने काम में कम उत्साही हो जाएंगे बल्कि छात्रों की प्रगति भी बाधित होगी।
अत: यह आवश्यक है कि समाज शिक्षकों के अवकाशों को केवल छुट्टियों के रूप में न देखे बल्कि उनके विकास और सशक्तिकरण का साधन माने। बिना मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास के शिक्षक छात्रों के भविष्य का सही मार्गदर्शन नहीं कर पाएंगे। छात्रों के मानसिक और शैक्षिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक भी अपने जीवन में संतुलन बनाए रखें। अवकाश उन्हें यह संतुलन प्रदान करता है जिससे वे अपने छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। यदि शिक्षकों को लगातार काम में उलझाए रखा गया तो वे न केवल अपनी स्वतंत्रता खो देंगे बल्कि वे एक ऐसे यंत्र बन जाएंगे जो केवल आदेशों का पालन करता है। इस प्रकार की व्यवस्था से शिक्षा में न तो क्रांति आ सकती है और न ही छात्रों को वास्तविक ज्ञान का अनुभव मिल सकता है।
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