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लखनऊ/ कानपुर देहात। जिले के परिषदीय विद्यालयों के कंपोजिट ग्रांट में फर्जीवाड़ा करना प्रधानाध्यापकों के लिए आसान नहीं होगा। शासन ने इसके खर्च करने के नियम में बदलाव किया है। बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी भुगतान को पीएफएमएस से करने का फरमान जारी कर दिया है। इस आदेश की जद में सभी परिषदीय विद्यालयों की विद्यालय प्रबंध समिति भी आ गई है। अब वह नगद भुगतान नहीं कर पाएगी। यह धनराशि खर्च करने से पहले प्रधानाध्यापक को कार्ययोजना बनानी होगी। जीएसटी बिल पोर्टल पर अपलोड करना होगा। उसके बाद अधिकारियों की संस्तुति के बाद यह धनराशि दुकानदार के बैंक खाते में सीधे भेजी जाएगी। प्रधानाध्यापक को यह भी ध्यान रखना होगा कि वह जिस दुकानदार को वेंडर बना रहे हैं उसके पास जीएसटी नंबर का होना अनिवार्य है अन्यथा की स्थिति में उसे वेंडर नहीं बना सकते। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को दिशा निर्देश जारी किये हैं। बीएसए के आदेश पर अब एसएमसी से ऑनलाइन भुगतान की प्रक्रिया लगभग सभी ब्लॉकों में शुरू कर दी गई है। स्वास्थ्य पर खर्च करने के लिए अधिकांश शिक्षकों ने कटियार मेडिकल स्टोर को वेंडर बनाया है। बतादें विद्यालय संचालन के लिए शासन के निर्देश पर विभाग कई मद की धनराशि एसएमसी खाते में भेजता है फिर अध्यक्ष व सचिव के हस्ताक्षर से चेक से धन निकालकर प्रधानाध्यापक जरूरत के हिसाब से खर्च कर विद्यालय में अनुरक्षण समेत अन्य कार्य कराते थे। अब बेसिक शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर दिया है कि सभी तरह का भुगतान पीएफएमएस (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली) से होगा। चेक से भुगतान नहीं कर सकेंगे। ऑनलाइन माध्यम से पीएफएमएस से ही भुगतान करना होगा। विभाग ने चेक काटने पर रोक लगा दी है। ऐसे में अब प्रधानाध्यापक विकास मद में मिले राशि को पीएफएमएस के माध्यम से ऑनलाइन भुगतान करना शुरू कर दिए हैं। इसमें उनको अड़चन भी आ रही है। पीएफएमएस पोर्टल से भुगतान के लिए बीआरसी के लेखाकारों एवं नामित व्यक्ति की मदद लेनी पड़ रही है।
जिले में 1926 परिषदीय विद्यालय हैं। परिषदीय स्कूलों में स्वास्थ्य, स्वच्छता, हैंडवाशिंग, रखरखाव, रंगाई-पुताई सहित अन्य कार्य के लिए प्रत्येक वर्ष शासन से प्रबंध समितियों के खाते में छात्र संख्या के अनुसार तय धनराशि भेजी जाती है। अधिकांश विद्यालयों के प्रधानाध्यापक यह धनराशि मनमाने तरीके से निकालकर खर्च करते हैं। समय सीमा के बाद भी खर्च करते हैं। इससे स्कूलों की दशा जीर्णशीर्ण बनी रह जाती है। प्रधानाध्यापकों की मनमानी पर रोक के लिए शासन ने यह धनराशि खर्च करने का नियम संशोधित कर ऑनलाइन कर दिया है जिसके चलते कंपोजिट ग्रांट खर्च करने से पहले प्रधानाध्यापक को मद बताना होगा। इसके बाद मद की कार्ययोजना तैयार कर किसी दुकानदार से जीएसटी बिल लेकर पोर्टल पर अपलोड करना होगा। कार्ययोजना की संस्तुति के बाद प्रधानाध्यापक के मोबाइल पर ओटीपी मिलेगा। इसी ओटीपी से संबंधित दुकानदार के बैंक खाते में कार्ययोजना तैयार कर किसी दुकानदार से जीएसटी बिल लेकर पोर्टल पर अपलोड करना होगा तब जाकर कहीं भुगतान हो सकेगा जिसके चलते कंपोजिट ग्रांट में फर्जीवाड़े में भी रोका लगाई जा सकेगी।
जिले के परिषदीय विद्यालयों को मिलने वाली कंपोजिट ग्रांट के मामले में शासन की तरफ से जारी निर्देश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि विद्यालय में कराए जा रहे कार्यों का प्रचार-प्रसार भी कराना होगा। साथ ही साथ परिषदीय स्कूलों की दीवार पर कंपोजिट ग्रांट राशि खर्च करने का ब्योरा भी लिखवाना होगा। इसी तरह परिषदीय स्कूलों की विद्यालयों पर पिछले तीन वर्षों का पूरा हिसाब किताब स्कूलों की दीवारों पर लिखवाना होगा।
परिषदीय विद्यालयों के कंपोजिट ग्रांट की धनराशि के खर्च का ब्यौरा पोर्टल पर अपलोड करना होगा। वित्तीय वर्ष में धनराशि खर्च न करने की स्थिति मेें बजट शून्य हो जाएगा। सरकार ने स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर टोटल ग्रांट का 10 फीसदी खर्च करने का स्पष्ट निर्देश जारी किया है और इसके लिए निर्धारित सामग्री खरीदने की लिस्ट भी जारी की है।
स्वास्थ्य पर खर्च करनी होगी 10 फीसदी ग्रांट, खरीदनी होगी निम्न सामग्री –
थर्मामीटर, एंटीसेप्टिक क्रीम, बीटाडीन क्रीम, वाटरप्रूफ बैंडेज स्ट्रिप, काटन पट्टी, हाइड्रोजन, स्प्रिट, डेटॉल लिक्विड, छाले और दांतो के दर्द को दूर करने के लिए जेल, मास्क, सेनिटाइजर, स्प्रे/बाम या दर्द निवारक जेल, रूई यानि कॉटन, दर्द निवारक दवाएं(पेट, सर, शरीर दर्द), खांसी जुकाम बुखार की दवाएं, आई ड्रॉप, एंटासिड/गैस की दवा, फिनायल, टॉयलेट क्लीनर, नेलकटर इत्यादि।
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