लखनऊ/ कानपुर देहात। ग्राम प्रधानों के संगठन (राष्ट्रीय पंचायती राज ग्राम प्रधान संगठन) ने गांव की स्कूल प्रबंधन समिति को ग्राम शिक्षा समिति के प्रति जवाबदेह बनाने की मांग उठाई है।
संगठन के अध्यक्ष ललित शर्मा की ओर से इस बारे में पंचायतीराज निदेशक को पत्र दिया गया है। इस पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1947 में वर्णित ग्राम पंचायत की छह समितियों में से शिक्षा समिति को निष्प्रभावी कर स्कूल प्रबंधन समिति को विद्यालय संचालन के अधिकार सौंपे गए हैं। ऐसी स्थिति में स्कूल प्रबंधन समिति को ग्राम शिक्षा समिति के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है। पत्र में निदेशक पंचायतीराज से आग्रह किया गया है। कि इस मामले को शिक्षा विभाग के साथ समन्वय बनाकर निस्तारित करवाया जाए।
प्रधान संगठन का कहना है कि विभागों द्वारा पंचायतों की सीमा में कार्य करवाने के लिए कोई पूर्व सूचना ग्राम पंचायतों को नहीं दी जाती है। सांसद-विधायक निधि, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत द्वारा हाईमास्ट लाइट लगवाई जा रही हैं, मगर ग्राम पंचायतों से इसकी अनापत्ति नहीं प्राप्त की जा रही है स्कूलों में कायाकल्प के तहत अन्य कार्य भी करवाए जा रहे हैं जिसकी की जानकारी ग्राम प्रधान को नहीं दी जा रही है।
बताते चलें 2015 के पहले ग्राम शिक्षा निधि के तहत स्कूलों में खाते का संचालन होता था जिसमें विद्यालय के प्रधानाध्यापक एवं ग्राम प्रधान के साथ संयुक्त खातेधारक होते थे दोनों की सहमति से ही विभिन्न कार्य करवाने के लिए धनराशि निकाली जाती थी लेकिन इसमें कई जगह ग्राम प्रधान स्कूल कार्यों के लिए धनराशि निकालने हेतु प्रधानाध्यापकों से रूपये की मांग करते थे जिसके चलते प्रधानाध्यापक और ग्राम प्रधान में तनातनी चलती रहती थी। इन्हीं शिकायतों को देखते हुए सरकार ने ग्राम प्रधानों की दखलंदाजी परिषदीय स्कूलों से खत्म कर दी।केवल मध्याह्न भोजन योजना में ही ग्राम प्रधानों का हस्तक्षेप रखा गया है। नए शासनादेश के तहत प्रत्येक विद्यालय में दो वर्ष के लिए 15 सदस्यीय विद्यालय प्रबंध समिति गठित कर स्थानीय बैंकों में खाता खोलने का निर्देश दिया गया था।
इसका संचालन अभिभावकों में से चयनित अध्यक्ष व पदेन सचिव प्रधानाध्यापक करेंगे। उक्त खाते से स्कूल ग्रांट, भवन निर्माण, यूनिफार्म वितरण, विद्यालय की मरम्मत रख-रखाव आदि मदों का धन आहरित होगा। वर्तमान में पीएफएमएस पोर्टल के माध्यम से विद्यालय में किसी भी कार्य के लिए धनराशि निकाली जाती है क्योंकि अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती रहती थी की प्रधानाध्यापक स्कूल में भेजी गई धनराशि को स्कूल में न खर्च करके स्वयं के कार्यों में खर्च कर रहे हैं, इसे देखते हुए सरकार ने इस प्रक्रिया को पूर्णतया पारदर्शी बना दिया है। वर्तमान में कुछ सालों से परिषदीय स्कूलों को कंपोजिट ग्रांट के तहत छात्र संख्या के अनुसार भारी भरकम धनराशि भेजी जा रही है तो ग्राम प्रधान इसमें अपनी दखल देना चाहते हैं किन्तु सरकार ऐसा बिलकुल भी नहीं करने वाली क्योंकि उसने पहले से ही सारी प्रक्रिया हाईटेक कर रखी है। प्रधानाध्यापक कंपोजिट ग्रांट का उपयोग निर्धारित आवश्यकताओं के मद में ही खर्च कर सकते हैं विभाग निरीक्षण कर इसकी जांच करता रहता है।
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