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स्कूलों को जल्द मिलेगी कंपोजिट ग्रांट प्रधानाध्यापकों को जेब से नहीं खर्च करने पड़ेंगे रुपए 

एक तरफ तो शिक्षकों पर स्कूलों को चाक-चौबंद रखने और कोई भी लापरवाही नहीं बरतने का दबाव है वहीं दूसरी तरफ जिले के परिषदीय स्कूलों में सत्र शुरू होने के आठ महीने बाद कंपोजिट ग्रांट आई है। हालात ये है कि मार्कर, चॉक, डस्टर और स्टेशनरी समेत स्कूल के रख-रखाव के तमाम कार्यों के लिए अभी तक शिक्षकों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ा।

लखनऊ / कानपुर देहात। एक तरफ तो शिक्षकों पर स्कूलों को चाक-चौबंद रखने और कोई भी लापरवाही नहीं बरतने का दबाव है वहीं दूसरी तरफ जिले के परिषदीय स्कूलों में सत्र शुरू होने के आठ महीने बाद कंपोजिट ग्रांट आई है। हालात ये है कि मार्कर, चॉक, डस्टर और स्टेशनरी समेत स्कूल के रख-रखाव के तमाम कार्यों के लिए अभी तक शिक्षकों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ा।

जिले में 1925 परिषदीय स्कूल हैं जिनमें करीब 1 लाख 63 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं। इन स्कूलों में व्हाइट बोर्ड, मार्कर, चॉक, डस्टर, गार्डन एरिया का रख-रखाव, स्टेशनरी, हाथ धोने के लिए साबुन, टॉयलेट क्लीनर, रंगाई-पुताई, मरम्मत, बिजली एवं पानी समेत स्कूल के रख-रखाव से संबंधित तमाम कार्यों के लिए 10 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक की कंपोजिट ग्रांट शासन से जारी होती है। ये पैसा स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या के आधार पर स्कूल प्रबंधन समिति के खाते में आता है। जिसे सत्र के अंतिम माह यानि मार्च तक खर्च करना होता है। मगर नया सत्र शुरू होने के आठ महीने बाद भी स्कूलों को कंपोजिट ग्रांट नहीं मिली है। जिसका बोझ शिक्षकों को उठाना पड़ है। शिक्षकों को मजबूरी में खुद के खर्चे पर इन सभी कार्यों को कराना पड़ रहा है। शिक्षकों का कहना है कि कई छोटे-छोटे काम के लिए जीएसटी बिल नहीं मिलता है और बिना जीएसटी बिल के पैसा पास नहीं होता है जिसकी वजह से जो पैसा शिक्षक खर्च करते हैं वह उन्हें वापस भी नहीं मिल पाता है।

नौकरी बचाने के लिए मजबूरी में जेब से खर्च कर रहे शिक्षक-

एक स्कूल के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्कूलों में यदि कोई भी कमी पाई जाती है तो उसके लिए शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है जबकि उसके लिए न तो पर्याप्त साधन होते हैं और ना ही बजट होता है। वहीं यदि कोई शिक्षक शासन की कमियों को उजागर करता है तो उसकी गाज भी शिक्षकों पर ही गिरती है। यही वजह है कि शिक्षकों को अपनी नौकरी बचाने के लिए मजबूरी में अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। शासन के इस रवैये से भी शिक्षकों में काफी नाराजगी है।

देरी की वजह से बिना खर्च ही वापस करनी पड़ती है ग्रांट-

देर से ग्रांट मिलने से शिक्षकों को स्कूल के काम कराने में परेशानी आती है। यही वजह है कि अप्रैल से सत्र शुरू हो गया है फिर भी अभी तक कई स्कूल टूटी बेंच को ठीक नहीं करा पाए हैं। स्कूलों के प्रधानाध्यापकों का कहना है कि कंपोजिट ग्रांट आधा सत्र खत्म होने के बाद आता है। इस वजह से स्कूल में बहुत सा काम नहीं हो पाता है और इस वजह से हर साल ग्रांट का बड़ा हिस्सा बिना खर्च किए ही लौट जाता है।

छात्र संख्या के आधार पर इस तरह मिलती है ग्रांट-

  • एक से 30 बच्चों पर – 10 हजार
  • 31 से 100 बच्चों पर – 25 हजार
  • 101 से 250 बच्चों पर – 50 हजार
  • 251 से 1000 बच्चों पर – 75 हजार
  • 1000 से अधिक बच्चों पर – एक लाख

वित्त एवं लेखाधिकारी आशुतोष त्रिपाठी ने बताया कि शिक्षक जल्द ही स्कूलों में कंपोजिट ग्रांट से काम करा सकेंगे। जल्द ही स्कूलों के प्रबंधन समिति के खाते में ग्रांट भेज दी जाएगी जिसके बाद शिक्षक इसका इस्तेमाल कर सकेंगे।

AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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