क्यों भारत में जलती रहती, सदा सुहागिन नारी है।
जन मानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है।।
पुत्र जन्म लेते ही घर में, लहर खुषी की छा जाती।
लेकिन कन्या इस धरती पर, एक समस्या बन जाती।
पाल पोष कर किया सयाना, पढ.ने में भारी पड.ती है।
पास पिता के नहीं है पैसा, इस पर कुवॉरी रहती है।
पीले कैसे हाथ करें वे, घर में चिंता भारी है।।
जन मानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है।।1।।
धन वालों की इस दुनिया में, निर्धन बैठे रोते हैं।
जिनके घर में सजी बारातें, वे ही सब कुछ खोते हैं।
डोली सजकर इक बाला की, साजन के घर जाती है।
किन्तु दहेज के कारण वह, पल-पल पीड़ा पाती है।
भूखे रह कर देती खुषिया, फिर भी उनसे हारी है।।
जन मानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है।।2।।
रोज सुबह इक नई खबर, आती है अखबारों में।
मांग के खातिर नारी बिकती, पुरुषों के बाजारों में।
भूखी नजरें कोमल काया, सिसकी गुमसुम रहती है।
लाज बचाने को पल-पल, वह यूँ ही घुटती रहती है।
दहेज नहीं यह दानव भारी, मारे अबला नारी है।
जन मानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है।।3।।
दूर भगा दें इस दुनिया से, जो मांग यहॉ पर रहती है।
अस्तित्व मिटाती नारी का वह, देष कलंकित करती है।
प्रेम बढ़ा कर दर्द मिटा दें, मानव की भाषा कहती है।
करें सुरक्षा नारी की हम, जो कष्ट यहां पर सहती है।
सोच के देखो दिल में अपने, क्या दौलत सब पे भ।री है।।
जन मानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है।।4।।
मौलिक एवं स्वरचित
राम सेवक वर्मा
विवेकानन्द नगर पुखरायां कानपुर देहात उ0प्र0
मो0-9454344282
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