गुंडा भईया
चोर ले जाता है पैसे गुल्लक तोड़ के कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के हाथ में लेके लाठी डण्डे अपने ही मोहल्ले के छुट भईया गुंडे चले जाते हैं परिवार का सिर फोड़ के कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के चोर ले जाता है...................

चोर ले जाता है पैसे गुल्लक तोड़ के
कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के
हाथ में लेके लाठी डण्डे
अपने ही मोहल्ले के छुट भईया गुंडे
चले जाते हैं परिवार का सिर फोड़ के
कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के
चोर ले जाता है……………….
यही गुंडे आगे चल के ऊँचे पदों पर बैठते हैं
सांसद, विधायक बनने के बाद अपनी मूंछें ऐंठते हैं
वोट मांगते फिरते हैं हाथ जोड़ के
कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के
चोर ले जाता है………………….
गुंडे, मबलियों को कोई क्यों नहीं फांसी के फंदे तक पहुँचता है
हर दल सत्ता में आता है और चला जाता है
अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ के
कानून सोता है रजाई ओढ़ के
चोर ले जाता है…………………………….
किसी का पति मारा जाता है किसी का बेटा
संवेदना व्यक्त करने के लिए घर पे जाता है नेता
और फिर चला जाता है उसे भगवान के भरोसे छोड़ के
कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के
चोर ले जाता है पैसे गुल्लक तोड़ के
इस समय भ्रष्टाचार का बोलबाला है
छह महीने में सड़क उखड़ जाती, करोड़ों का घोटाला है
अधिकारी पैसे लेते हैं गर्दन मरोड़ के
कानून सोता है अपनी रजाई ओढ़ के
चोर ले जाता है पैसे गुल्लक तोड़ के
लेखक- अनिल दोहरे
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