कानपुर नगर : जिले में गृह प्रसव को दरकिनार कर महिलाओं ने सुरक्षित व संस्थागत प्रसव की तरफ अपना कदम बढ़ाया है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा संस्थागत प्रसव को अधिकाधिक बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों का सकारात्मक असर दिख रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे – 5 के अनुसार जिले में संस्थागत प्रसव में बदलाव देखने को मिला है। बीते पांच साल में संस्थागत प्रसव के फायदों के प्रति आई जागरूकता के कारण इसमें 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पूर्व में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 की रिपोर्ट में संस्थागत प्रसव दर 76.4 प्रतिशत था। जो इस बार के सर्वे में बढ़कर 86.6 प्रतिशत हो गया है। वहीं एनएफएचएस-4 में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में संस्थागत प्रसव दर 48.8 प्रतिशत रहा था। यह दर बीते पांच सालों में बढ़ कर 60.3 प्रतिशत हो गया है।
यह आंकड़ें सिर्फ बानगी भर हैं। ऐसे न जाने कितनी परिवार मातृत्व स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान पूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ एवं संस्थागत प्रसव एक महिला का अधिकार हैI सरकार का प्रयास है अधिक से अधिक प्रसव संस्थागत हों। इससे मातृ व शिशु मृत्यु दर को कम करने में सहायता मिलती है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आरसीएच) डॉ आरवी सिंह ने बताया कि जटिलताओं की रोकथाम, पहचान और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए सभी महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कुशल देखभाल एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आवश्यक है। मातृ और नवजात मृत्यु को समाप्त करने के लिए एक सक्षम वातावरण में काम करने वाले उचित रूप से प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा सहायता की आवश्यकता है। बच्चे के जन्म के दौरान कुशल देखभाल सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति यह है कि सभी जन्म स्वास्थ्य सुविधाओं में हों, जहां प्रसूति संबंधी जटिलताओं का इलाज किया जा सके।अच्छी बात यह है कि जनपद में संस्थागत प्रसव का आंकड़ा पिछले तीन सालों में बढ़ा हैI लोगों में सुरक्षित एवं स्वस्थ प्रसव को लेकर जागरूकता बढ़ रही हैI
गर्भवती का उचित ख़्याल, रखे परिवार खुशहाल-
जिला महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सक अधीक्षिका डॉ रूचि जैन का कहना है कि प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) के महत्व को गर्भवती और उसके परिजनों को समझना जरूरी है। महिला गर्भवती होने की पुष्टि के साथ उसका पहली एएनसी जरूर कराये और इस समय उसका पहला टीटी का टीका भी लगता है। वही 4-5 माह में दूसरी सम्पूर्ण जांच जरूर कराये। और प्रसव के पहले 7-8 माह में तीसरी सम्पूर्ण जांच जरूर कराये। इन जाँचों के जरिये गर्भावस्था के ख़तरे जैसे खून की कमी होना, मधुमेह की शिकायत, बच्चे की स्थिति के बारें में पता चलता है। जिसका समय रहते निस्तारण करना जरूरी है। वही तीसरी जांच में पता चल जाता है कि बच्चा सामान्य होगा या ऑपरेशन से, जिससे कि परिवार वाले पहले से ही प्रसव केंद्र चयनित कर ले, ताकि प्रसव के समय किसी प्रकार की समस्या न हो।
जनपद में बढ़ रहा संस्थगत प्रसव के प्रति विश्वास-
स्वास्थ्य विभाग से मिले आकड़ों के अनुसार वर्ष 2020-21 में कुल 52739 , वर्ष 2021-22 में 83684 और वर्ष 2022-23 में 70341 संस्थागत प्रसव हुए। इसके साथ ही वर्ष 2023 – 2024 में सितम्बर माह तक कुल 27358 संस्थगत प्रसव हुए हैं। यह आंकड़े इस बात की बानगी हैं की संस्थागत प्रसव के प्रति विश्वास बढ़ रहा है।
गर्भवती महिलाओं के तीन डी हो सकते है ख़तरनाक
जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा बताते हैं कि गर्भावस्था के लिए तीन डी यानि तीन डेले (देरी) बहुत ख़तरनाक
हो सकती हैं-
1- निर्णय लेने में देरी
2- यातायात में देरी
3- गुणवत्ता पूर्ण देखभाल में देरी
गर्भवती को मिलती है यह सुविधा-
एचआईवी, सिफलिस, वजन, ब्लड प्रेशर, अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जांचें।
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