पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से कॉफ़ी महत्वपूर्ण है-प्रोफ़ेसर अहिरवार
-शोध छात्र परमदीप पटेल द्वारा किये जा रहे सर्वेक्षण में अनेक नये पुरास्थल प्रकाश में आ रहे हैं
शहाबगंज/चकिया, चंदौली। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है।यह जिला प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान तक अनेक सांस्कृतिक क्रियाकलापों का केन्द्र रहा है। इस जनपद में प्रवाहमान छोटी.बड़ी नदियां मानव के उद्भव और विकास की कहानी की गवाह रही हैं तथा विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के फलने.फूलने में इनका अहम योगदान रहा है।काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल द्वारा किये जा रहे सर्वेक्षण में अनेक नये पुरास्थल प्रकाश में आ रहे हैं।
प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार के पर्यवेक्षण में अपने शोध विषय ष्चंद्रप्रभा नदी घाटी के विशेष सन्दर्भ में चंदौली जनपद का सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक अध्ययन, विषय पर शोध कार्य कर रहे शोधार्थी परमदीप पटेल को सर्वेक्षण में चंदौली जिले की चकिया तहसील के फिरोजपुर, भीखमपुर एवं दाउदपुर गांवों में पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अनेक पुरास्थल प्रकाश में आये हैं।
इनमें फिरोजपुर ग्राम की कोठी पहाड़ी में स्थित पाषाण स्तूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।इसके साथ ही यहाँ से बड़ी संख्या में पुरापाषाणिक औजार, मध्यपाषाण काल के उपकरण, मेगालिथिक समाधियाँ और चित्रित शैलाश्रय मिले हैं जिनका अनुमानित कालक्रम पाँच हजार वर्षों से पचास हजार वर्ष पूर्व तक का माना जाता है।
स्तूप की खोज के संबंध में विषय विशेषज्ञ एवं शोध निर्देशक प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार ने बताया कि ष्फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी पर मिला स्तूप उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप है। यह महान मौर्य सम्राट अशोक के समय का निर्मित एक विलक्षण स्तूप है।इस प्रकार के पत्थर के स्तूप साँची और उसके आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में मिलते हैं जो अपनी निर्माण शैली और कला सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात हैं।
प्रो. अहिरवार कहते हैं कि ष्उत्तर भारत में नये पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तर भारत में अब तक जितने भी स्तूप प्रकाश में आये हैं वह सभी ईंटों या मिट्टी के बने हैं।इससे ऐतिहासिक और पुरातात्विक अनुसंधान के नये द्वार खुलेंगे।
सर्वेक्षण के दौरान भीखमपुर नामक गाँव में स्थित पहाड़ी में भी प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिले हैं जिनमें आदि मानव द्वारा लाल रंग से बनाये गए विभिन्न प्रकार के चित्र तथा पूरी पहाड़ी के विभिन्न भागों में मगध प्रकार के उत्कीर्ण विशेष चिन्ह प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के चिन्ह प्रायः मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं।
इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति तथा पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में स्थित बोधिसत्व की प्रतिमा इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को प्रतिबिंबित करती है।ये प्रतिमाएं प्रतिमा लक्षण की दृष्टि से कुषाण कालीन प्रतीत होती हैं। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से इस तथ्य की पुष्टि होती है।पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल पुरातात्विक महत्त्व का टीला भी मिला है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की पुरावस्तुयें बिखरी पड़ी हैं।
इसमें छठी शताब्दी से लेकर पूर्व मध्यकालीन मृदभांड के टुकड़े, मुख्यतः कृष्ण लोहित मृदभांड, कृष्ण लेपित मृदभांड, मोटे एवं पतले गढ़न के लाल मृदभांड तथा पत्थर के सिल, लोढे,चक्कियां, माप,तौल में प्रयोग में लाये जानेवाले पत्थर के बटखरे प्राप्त होते हैं।
भीखमपुर की तरह फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी समीपवर्ती दाउदपुर की पहाड़ी में भी आदि मानव के निवास के लिए उपयुक्त दो चित्रित शैलाश्रय मिले हैं तथा मध्य पाषाण कालीन पत्थर के उपकरण मिले हैं।
पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग,काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोध, छात्र परमदीप पटेल, रविशंकर सिंह पटेल तथा केतन पटेल शामिल रहे तथा विभाग के ही वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. महेश प्रसाद अहिरवार, अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनय कुमार ने खोजें गए पुरास्थलों से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों के प्रमाणन के निमित्त पुरास्थलों का भ्रमण किया तथा उनके ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व की पुष्टि की।
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