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रुरुगंज,औरैया,अमन यात्रा। रुरुगंज क्षेत्र के गांव विशुनपुर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा समापन अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय कथाकार एवं समाज सुधारक आचार्य मनोज अवस्थी ने सुदामा चरित्र और पारीक्षत मोक्ष की कथा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया। उन्होंने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं, उनसे बड़ा धनवान कोई नहीं था, क्योंकि उनके पास भगवान की भक्ति का धन था और जिसके मित्र साक्षात भगवान हों वो गरीब कैसे हो सकता है। उन्होंने अपने सुख व दु:खों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन का प्रसंग सुनकर श्रृद्धालु भावविभोर हो गये।
उन्होंने कहा कि जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए तो उन्होंने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखे, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए, अगर सच्चा मित्र है तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए। भक्त के बस में भगवान किस प्रकार हो जाते हैं कि भगवान ने सुदामा को देखते हुए दीन हीन अवस्था में आंसुओं के जल से ही उनके पदों को धो दिया, ऐसा प्रेम था भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच और मित्र ने जान भी नहीं पाया, उन्हें सब प्रकार का सुख यश वैभव दे दिया। देना हो तो दे चुके विप्र न जानी गात। चलती बेर गुपाल जू कछू न दीन्हों हाथ।। सुदामा जी को सब तरह से परिपूर्ण किया।
सुदामा की लौट के जब अपने गृहनगर ही आते हैं , तो भूल जाते हैं कि मेरी तो टूटी-फूटी या फिर यह महल अटारी कहां से पैदा हो गए, तो सुशीला सामने दिख जाती हैं, सुदामी खुश हो जाते हैं, ऐसी थी ऐसी मित्रता होना चाहिए। इसका विशद वर्णन आचार्य मनोज अवस्थी ने अपने समापन भागवत सप्ताह में किया और भागवत का सार बताया। आचार्य ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, वहीं कथा कराने वाले भी पुण्य के भागी होते हैं। उन्होंने श्रीमद् भागवत कथा की पूर्णता प्रदान करते हुए विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने सात दिनों की कथा का सारांश बताते हुए कहा कि जीवन कई योनियों के बाद मिलता है, इसे कैसे जीना चाहिए पण्डाल में उपस्थित श्रृद्धालुओं को समझाया। अंत में कृष्ण के दिव्य लोक पहुंचने का वर्णन किया।
सुदामा भगवान के सच्चे भक्त थे आचार्य मनोज अवस्थी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा गरीब नहीं थे उनसे बड़ा अमीर कोई नहीं था, क्योंकि उनके पास भगवान भक्ति की सबसे बड़ी दौलत थी और जिसका मित्र स्वयं भगवान थे वो गरीब कैसे हुआ। सुदामा ने संसार में कभी भीख नहीं मांगी। कुछ कथा व्यास सुदामा को भिखारी वेश बनाकर कथा पण्डाल में घुमाते हैं मेरा उनसे निवेदन है कि कोई भी व्यास चंद पैसों के लिए सुदामा को भिखारी बनाकर कथा पण्डाल में न घुमाए, साथ ही कथा स्थल पर कथा सुन रहे श्रृद्धालुओं से भी कहा कि जहां कहीं कथा चल रही हो वहां कथा व्यास से आप निवेदन कर लेना कि सुदामा को भिखारी बनाकर पण्डाल में न घुमाएं, करना ही है तो उनके त्याग और उनकी भक्ति का वर्णन करें।
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