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विकास सक्सेना, औरैया। गुरुवार को जिले में पांचवी फांसी से जहां न्याय के प्रति लोगों में विश्वास बड़ा वहीं दोषियों में हड़कंप भी मचा यहां बताते चले की न्यायालय विशेष न्यायाधीश अधिनियम औरैया के पीठासीन अधिकारी मनराज सिंह ने दिबियापुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत मुकदमा अपराध संख्या 293 / 23 धारा 302, 376 व 3/4 लैंगिंग अपराधों से बालकों का संरक्षण में दोषी अपराधी रोहित पुत्र रामसेवक निवासी ग्राम तैयापर थाना दिबियापुर जनपद औरैया को फांसी की सजा सुनाई सजा सुनाते वक्त विशेष न्यायाधीश पोक्सो मनराज सिंह ने बताया कि ऐसे रिश्तेदारों पर अभिभावक विशेष ध्यान दें की रिश्तेदार कैसा है और उसका चाल चलन कैसा है।
समाज में ऐसे रिश्तेदारों को देखते हुए अभिभावक अपनी छोटी-छोटी बच्चियों को रिश्तेदारी में भेजने से बचे जिससे ऐसी घटनाएं न हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे दुष्कर्मी समाज में जीने लायक नहीं है। कानून की जो सबसे कड़ी सजा है, वह उनको मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्ची की आत्मा को कुछ न्याय दिलाने की कोशिश की है। जिसके लिए अभियोजन अभिषेक मिश्रा, जितेंद्र तोमर, मृदुल मिश्रा के सहयोग से मात्र 8 माह में यह निर्णय हो सका और एक बच्ची को न्याय मिला। उक्त निर्णय में अभियुक्त दोषसिद्ध अपराधी को धारा 302 भारतीय दंड संहिता के अपराध में मृत्यु दंड से दंडित किया गया और चार लाख रुपए का जुर्माना भी लगा, वही दोष सिद्ध अभियुक्त रोहित को धारा 376 भारतीय दंड संहिता अपठित धारा 3/4 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अपराध में आजीवन कारावास के कठोर कारावास से तथा 100000 रुपए अर्थ देने से दंडित किया गया। अर्थ दंड अदा न करने पर अभियुक्त एक वर्ष की अतिरिक्त सजा कटेगा, वही जमा कराई गई अर्थ दंड की धनराशि में से 50 प्रतिशत की धनराशि मृतिका पीड़िता के माता-पिता को प्रदान की जाएगी।
चाल चलन को समझ कर रिश्तेदारों पर अभिभावक विशेष ध्यान दें
औरैया। विशेष न्यायाधीश पोक्सो मनराज सिंह ने बताया कि ऐसे रिश्तेदारों पर अभिभावक विशेष ध्यान दें कि रिश्तेदार कैसा है और उसकी चाल चलन कैसा है। समाज में ऐसी दुष्ट रिश्तो को देखते हुए अभिभावक अपनी छोटी-छोटी बच्चियों को रिश्तेदारी में भेजने से बच्चे जिससे ऐसी घटनाएं न हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे दुष्कर्मी समाज में जीने लायक नहीं हैं। कानून की जो सबसे कड़ी सजा है वह उनको मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने बच्ची की आत्मा को कुछ न्याय दिलाने की कोशिश की है। जिसके लिए अभियोजन अभिषेक मिश्रा, जितेंद्र तोमर व मृदुल मिश्रा के सहयोग से मात्र 8 माह में यह निर्णय हो सका और एक बच्ची को न्याय मिला।
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