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राजेश कटियार, कानपुर देहात। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के निकटतम 10 परिषदीय स्कूलों को सरकार आदर्श विद्यालय के रूप में विकसित करेगी। आदर्श विद्यालय के लिए चयनित परिषदीय स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का विकास तो होगा ही साथ ही उनमें डायट के डीएलएड प्रशिक्षुओं के आधुनिक शिक्षण कौशल के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से शिक्षा भी प्रदान की जाएगी ताकि डीएलएड प्रशिक्षुओं को भी अधिक से अधिक दक्ष शिक्षक बन सकें।
इसके लिए चयनित स्कूलों को प्रयोगशाला विद्यालय (लैब स्कूल) के रूप में चिन्हित किया जाएगा। लैब स्कूल के रूप में चिन्हित इन आदर्श विद्यालयों में प्राथमिक और कम्पोजिट दोनों प्रकार के विद्यालयों को शामिल किया जाएगा। सर्कुलर में सभी उप शिक्षा निदेशक एवं डायट के प्राचार्यों को आगामी पांच अगस्त तक चयनित विद्यालयों की सूची महानिदेशालय को भेजने के निर्देश दिये गये हैं। प्रत्येक लैब स्कूल के लिए प्रति सप्ताह पांच प्रशिक्षु नामित किए जाएंगे जो विद्यालय संबंधी सभी गतिविधियां मसलन शिक्षण कार्य से लेकर खेल गतिविधियों, प्रोजेक्ट वर्क सामुदायिक संवाद आदि में सक्रिये रूप से भाग लेंगे।
अकादमिक सहयोग एवं प्रशिक्षुओं के मार्गदर्शन के लिए एक प्रवक्ता को नोडल के रूप में नामित किया जाएगा जो प्रति सप्ताह उस विद्यालय का निरीक्षण कर प्रगति रिपोर्ट डायट के प्राचार्य को प्रस्तुत कर सके। इसके अलावा चयनित विद्यालयों का प्रोफाइल तैयार किया जायेगा जिसमें शिक्षक एवं छात्रों की संख्या सम्मिलित रहेगी। विद्यालयों में कराये जाने वाले कार्यों एवं उसकी प्रगति का रिकार्ड तैयार किया जाएगा। चयनित विद्यालयों को आदर्श बनाने के साथ फरवरी 2025 तक निपुण विद्यालय बनाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
यह होंगी सुविधाएं-
प्रत्येक लैब स्कूल के लिए प्रति सप्ताह पांच प्रशिक्षु नामित किए जाएंगे जो विद्यालय संबंधी सभी गतिविधियां मसलन शिक्षण कार्य से लेकर खेल गतिविधियों, प्रोजेक्ट वर्क सामुदायिक संवाद आदि में सक्रिय रूप से भाग लेंगे।
प्रयोगशाला विद्यालय का उद्देश्य-
बच्चों के स्तर व उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षण अधिगम योजना बनाना। रुचिपूर्ण गतिविधियों तथा खेल विधि द्वारा कक्षा शिक्षण प्रदान करना। प्रिन्ट रिच सामग्री को तैयार करना तथा उनका प्रयोग करना। टीएलएम का निर्माण कर कक्षा शिक्षण में प्रयोग करना। विद्यालय में शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने हेतु तथा सभी बच्चों के अपेक्षित अधिगम सम्प्राप्ति हेतु नवीन शिक्षण विधियों तथा सिद्धान्तों की खोज करना एवं उनकी प्रभावशीलता का आकलन करना। आकलन के उपरान्त प्रतिपादित शिक्षण विधियों व सिद्धान्तों का अन्य विद्यालयों में प्रयोग करना।
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