डिजिटल हाजिरी के विरोध में शिक्षक संगठन लामबंद
शिक्षकों के भारी विरोध के कारण पहले दिन ही परिषदीय स्कूलों में ऑनलाइन हाजिरी व्यवस्था धड़ाम हो गई। पूरे प्रदेश में कुल 609282 परिषदीय शिक्षकों में 2 फीसदी यानि 16015 शिक्षकों ने ही ऑनलाइन हाजिरी दर्ज की बाकी ने इसका बहिष्कार किया। तमाम शिक्षक संगठन ऑनलाइन हाजिरी के विरोध में लामबंद हो गए हैं।
कानपुर देहात। शिक्षकों के भारी विरोध के कारण पहले दिन ही परिषदीय स्कूलों में ऑनलाइन हाजिरी व्यवस्था धड़ाम हो गई। पूरे प्रदेश में कुल 609282 परिषदीय शिक्षकों में 2 फीसदी यानि 16015 शिक्षकों ने ही ऑनलाइन हाजिरी दर्ज की बाकी ने इसका बहिष्कार किया। तमाम शिक्षक संगठन ऑनलाइन हाजिरी के विरोध में लामबंद हो गए हैं। शिक्षक संगठनों के आह्वान पर शिक्षकों ने काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य किया और ऑनलाइन उपस्थिति से उन्हें मुक्त रखे जाने की मांग दोहराई। दूसरी तरफ सरकार ने आशा जताई है कि समय की पाबंदी के मामले में शिक्षक जिम्मेदारी मानेंगे। एक सप्ताह या एक पखवाड़े के भीतर आंकड़ों में सुधार होगा। दरअसल परिषदीय शिक्षकों के लिए आठ जुलाई से ऑनलाइन उपस्थिति अनिवार्य की गई थी। इस निर्णय के खिलाफ शिक्षक संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। सोशल मीडिया पर भी विरोध दर्ज किया जा रहा है।
हाजिरी के लिए दिया गया अतिरिक्त समय-
विरोध को देखते हुए डीजी स्कूल शिक्षा की ओर से सुबह के समय ऑनलाइन हाजिरी लगाने के लिए आधे घंटे का अतिरिक्त समय भी दिया गया लेकिन शिक्षकों का विरोध जारी रहा। शिक्षक सरकार पर तंज कस रहे हैं कि निसंदेह समय से शिक्षक का विद्यालय पहुंचना आवश्यक है किंतु समय से एंबुलेंस का पहुँचना और चिकित्सा भी तो आवश्यक है। समय से पुलिस का पहुँचना भी आवश्यक है। समय से फायरब्रिगेड का पहुंचना भी आवश्यक है। समय से रेलगाड़ी का चलना भी आवश्यक है। समय से हवाई जहाज का उड़ना भी आवश्यक है। समय से रोजगार भी मिलना आवश्यक है। समय से पदोन्नति, स्थानांतरण, महंगाई भत्ता, एरियर, चयन वेतनमान भी आवश्यक है। समय से जनकल्याण की नीतियों का निर्माण भी आवश्यक है।
समय से गरीबी उन्मूलन भी आवश्यक है। समय से भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अपराध पर अंकुश लगाना भी आवश्यक है। जब भारत को विकसित करने, नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने, उनके मूलाधिकारों का संरक्षण करने के लिए देश के सभी नेता, न्यायमूर्ति, अधिकारी और कर्मचारी का कार्य समय से करना आवश्यक है तो समय की प्रतिबद्धता का प्रमाण केवल शिक्षकों से ही क्यों मांगा जा रहा है।
विद्यालयों में फर्नीचर, किताबें, खाद्यान्न, दूरसंचार नेटवर्क, बिजली की आपूर्ति, सड़क और कंपोजिट ग्रांट और पाठ्य पुस्तकें तो आज तक समय से उपलब्ध करा नहीं पाए और चले शिक्षकों पर उंगली उठाने। कुल मिलाकर ऑनलाइन अटेंडेंस की व्यवस्था शिक्षकों को रास नहीं आ रही है। शिक्षकों का कहना है कि यह व्यवस्था सबसे पहले अधिकारियों पर लागू करिए उसके उपरांत अन्य विभागों में भी लागू करिए सिर्फ बेसिक शिक्षा विभाग को टारगेट किया जाना उचित नहीं है।