दो साल में टेट करो पास वरना जबरन होगा रिटायरमेंट
सेवा में बने रहने के लिए शिक्षकों को टीईटी पास करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं

कानपुर देहात। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने देशभर के लाखों शिक्षकों की नींद उड़ा दी है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अब नई नियुक्ति, नौकरी में बने रहने और प्रमोशन के लिए टेट पास करना अनिवार्य है। इस पर जहां शिक्षक समुदाय में गुस्सा है वहीं अभिभावकों ने इसे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने वाला कदम बताया है तो बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा है कि शिक्षकों को अपडेट रहना चाहिए, बच्चों को हर वर्ष कुछ नया सिखाने के लिए पाठ्यक्रम बदलता रहता है।
हम उम्मीद करते हैं कि हमारे शिक्षक टेट पास कर लेंगे, कुछ अगर नहीं भी कर पाएंगे तो उनकी जगह नौजवानों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। शिक्षकों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा 23 अगस्त 2010 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के लिए लागू किया गया था जिसमें राज्य सरकारों को एक वर्ष का समय दिया गया था कि वे भी इस अधिनियम को लागू करें। इसी के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने 27 जुलाई 2011 को अधिनियम को लागू किया।
मगर इस पूरी प्रक्रिया में यह सवाल खड़ा होता है कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति इस अधिनियम के लागू होने से पहले हुई है उन पर टीईटी का आदेश किस आधार पर लगाया जा सकता है। बेसिक शिक्षा विभाग में जो नियुक्तियां अधिनियम लागू होने से पहले हुई थीं उन्हें टीईटी की बाध्यता में क्यों खड़ा किया जा रहा है? उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली शिक्षक पात्रता परीक्षा नवंबर 2011 में आयोजित की थी तब तक टीईटी नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। ऐसे में शिक्षकों का कहना है कि अधिनियम लागू होने के बाद नियुक्तियों को प्रभावित करना व्यवहारिक नहीं प्रतीत होता।
वे इसे मनमाना फैसला मानते हुए न्यायिक पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षकों की नियुक्ति चाहे जब हुई हो सेवा में रहने के लिए उनको टेट परीक्षा उत्तीर्ण करनी ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि शिक्षक की योग्यता पर कोई समझौता नहीं हो सकता। यानी अब कक्षा 1 से 8 तक पढ़ा रहे शिक्षकों को सेवा में बने रहने और प्रमोशन दोनों के लिए टेट पास करना अनिवार्य होगा।
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