नए किसान कानूनों की संवैधानिकता को परखेगा SC, केंद्र को किया जारी नोटिस
इस मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी. शुरू में कोर्ट ने चार हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा. लेकिन एटॉर्नी जनरल के आग्रह पर छह हफ्ते का समय दिया.
संसद ने पिछले दिनों फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स एक्ट, फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस एक्ट और एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) एक्ट पारित किया है. राष्ट्रपति की मुहर के बाद तीनों एक्ट कानून बन गए हैं. इनमें किसानों को कृषि मंडी के बाहर फसल बेचने, निजी कंपनियों और व्यापारियों से कॉन्ट्रेक्ट करने जैसी स्वतंत्रता दी गई है. इन कानूनों को कई याचिकाओं के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
कोर्ट की शुरुआती असहमति
चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने इस मसले पर लगी याचिकाओं में पहली वकील मनोहर लाल शर्मा की थी. इसमें नए कानूनों पर अमल से किसानों के शोषण की आशंका जताई गई थी. उनसे कोर्ट ने पूछा कि कानून तो अभी सिर्फ पास हुआ है. उसका ऐसा क्या परिणाम निकला है कि अभी सुनवाई की जाए? कोर्ट ने शर्मा से कहा कि वह याचिका वापस ले लें. जब कोई उचित वजह नज़र आए, तब कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं.
दूसरे याचिकाकर्ता ने संभाली बात
छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव के लिए पेश वकील के परमेश्वर ने बात संभाली. उन्होंने कहा कि बात सिर्फ संभावित परिणाम की नहीं है. कानून को असंवैधानिक तरीके से पास किया गया है. संविधान के तहत कृषि से जुड़े कानून राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों ने अपने यहां पहले से कृषि मंडी से जुड़े कानून बना रखे हैं. संसद ने संविधान में ज़रूरी संशोधन किए बिना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय पर कानून बना दिया.
कोर्ट का नोटिस
जजों ने इस बिंदु को अहम माना. सुनवाई के दौरान मौजूद एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से चीफ जस्टिस ने कहा, “अगर याचिकाकर्ता अपने-अपने राज्य के हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करते हैं, तब भी आपको जवाब देना पड़ेगा. हम नोटिस जारी कर रहे हैं. आप जवाब दाखिल कीजिए.”
फिलहाल कानून पर रोक नहीं
शुरू में कोर्ट ने सरकार से 4 हफ्ते में जवाब के लिए कहा. लेकिन एटॉर्नी जनरल के आग्रह पर उन्हें 6 हफ्ते का समय दे दिया. ऐसे में मामले की अगली सुनवाई नवंबर के अंत में या दिसंबर के पहले हफ्ते में होने की उम्मीद है. फिलहाल नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक नहीं है.