पीएफएमएस पोर्टल ने शिक्षकों को रुलाया और बैंकों को छकाया
परिषदीय स्कूलों के शिक्षक विकास कार्य कराने के बाद पीएफएमएस पोर्टल (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली) से भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। बेसिक शिक्षकों ने बताया कि पीएफएमएस पोर्टल से भुगतान करने के लिए उन्हें विभाग से प्रशिक्षित ही नहीं किया गया।

- अधिकांश शिक्षक नहीं भेज सके अपने वेंडर को धनराशि
- लटका भुगतान, पंजीकृत वेंडर को किया भुगतान, खाते में नहीं पहुंची रकम, नई तकनीक पड़ी भारी
लखनऊ/ कानपुर देहात। परिषदीय स्कूलों के शिक्षक विकास कार्य कराने के बाद पीएफएमएस पोर्टल (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली) से भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। बेसिक शिक्षकों ने बताया कि पीएफएमएस पोर्टल से भुगतान करने के लिए उन्हें विभाग से प्रशिक्षित ही नहीं किया गया। हम लोगो को जो प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए था वह नहीं दिया गया और जिसका कोई मतलब नहीं है वे प्रशिक्षण आए दिन करवाए जाते हैं। ऊपर से मार्च माह के अंत में अधिकांश मदों की धनराशि भेजी गई है। मदों में आए पैसे को 31 मार्च से पूर्व खर्च करने का दबाव भी है।
बताते हैं बैंकिंग क्षेत्र पर भी मार्च का डिजिटल दबाव भी समस्या को और भयावह बना रहा है। पीएफएमएस पोर्टल के माध्यम से पंजीकृत वेंडर के बैंक खाते में ही विकास कार्य के सापेक्ष धनराशि ट्रांसफर करनी होती है। यह प्रक्रिया काफी जटिल है। पीएफएमएस के लिए पहले पोर्टल से पीपीए प्रपत्र जनरेट कर डाउनलोड करना होगा। इस पर प्रबंध समिति यानी एसएमसी के अध्यक्ष व सचिव के हस्ताक्षर होंगे फिर यह भुगतान के लिए बैंक में जाएगा। पीपीए जनरेट होने के बाद भी कई स्कूलों का भुगतान लटक रहा है। वहीं कई स्कूल सर्वर धीमा होने से पीपीए जनरेट भी नहीं कर पा रहे हैं। यदि 31 मार्च से पहले ट्रांजेक्शन सफल नहीं हुआ तो पैसा लैप्स होने का खतरा है। ऐसे में उन शिक्षकों को अधिक दिक्कत होगी जिन्होंने अपने निजी संबंधों पर एडवांस में काम करवा लिया है और पीएफएमएस से भुगतान लटक गया है। हालांकि जिम्मेदारों का कहना है कि जिन शिक्षकों ने सही ढंग से पीपीए जनरेट कर लिया है उनका पैसा लैप्स नहीं होगा।
काम भी अटका, भुगतान भी लटका-
कई शिक्षकों ने बताया कि पीएफएमएस पोर्टल से भुगतान का प्रयास किया तो बैंक खाते से पैसे कट गए लेकिन वेंडर के खाते में नहीं पहुंचे। लेखाधिकारी कार्यालय में भी कोई इस बारे में सही जानकारी नहीं दे पा रहा है। ऐसे में काम व भुगतान दोनों लटक गए हैं। प्रशिक्षण के अभाव में शिक्षकों को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें।
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