राजेश कटियार, कानपुर देहात। प्रदेश के प्राइमरी शिक्षकों की पदोन्नति के लिए नई नीति करीब-करीब तय हो चुकी है। विभागीय अधिकारियों द्वारा ऐसी जानकारी दी जा रही है। बेसिक शिक्षा विभाग इसे शीघ्र ही अन्तिम रूप देकर शासन को भेजने की तैयारी में है। शासन की मुहर लगते ही इसे जारी किया जाएगा। इससे करीब दो लाख शिक्षकों को लाभ होगा। यह पदोन्नति हर तीन साल पर होगी। नई नीति में प्राइमरी में पदोन्नति पाने वाले शिक्षक उसी स्कूल में प्रधानाध्यापक भी बन सकेंगे जहां वे तैनात थे। अभी सहायक अध्यापक पद से पदोन्नति के बाद उच्च प्राइमरी में सहायक अध्यापक या दूसरे प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति का प्रावधान है। नई नीति प्रभावी होने के बाद स्कूल शिक्षा महानिदेशालय द्वारा बनाए गए मानकों को पूरा करने वाले उसी स्कूल में प्रधानाध्यापक बन सकेंगे। शिक्षकों की पदोन्नति भी हर तीन साल पर होगी। अभी शिक्षकों को पांच साल के बाद प्रोन्नति मिलती है हालांकि वर्ष 2016 के बाद से विभाग में शिक्षकों की कोई पदोन्नति नहीं हुई है। तीन साल पर पदोन्नति की नीति-2015 से पूर्व भी रही है जिसे बाद में सरकार ने पांच साल में तब्दील कर दिया था।
अब हर तीन साल में प्रमोशन का सपना दिखाया जा रहा है जबकि पिछले आठ सालों में एक बार भी पदोन्नति की खुशबू तक नहीं आई। हालात यह हैं कि कुछ शिक्षक प्रमोशन की आस में हाईकोर्ट तक जा पहुंचे और अब उम्मीद यह है कि नए आदेश जल्द ही जारी होंगे। ऐसे में शिक्षक यह सोच रहे होंगे। नई नीति का इंतजार करते-करते कहीं शिक्षक स्वयं पुरानी नीति न हो जाएं। शिक्षकों का तो यही कहना है कि बेसिक शिक्षा विभाग का काम कभी टाइमलाइन पर हो जाए तो वह चमत्कार ही कहलाएगा। आठ साल से पदोन्नति का इंतजार करते-करते उनके हौंसले पस्त हो गए हैं।
अब तो ऐसा लगता है जैसे किसी को पतंग उड़ाने का सपना दिखा दिया हो लेकिन डोर थमा न दी हो। हर बार नई नीति की चर्चा होती है लेकिन असलियत में कुछ बदलता नहीं। ज्येष्ठता सूची के बार-बार लटकने की कहानी किसी पुराने हिंदी सीरियल की तरह हो गई है जहां हर बार कुछ नया ड्रामा आ जाता है। जिलों में लापरवाही की गाथा तो वैसे भी शिक्षा विभाग की पहचान बन चुकी है। जब पदोन्नति सूची को 10 बार बनाया जा चुका हो तो संदेह करना स्वाभाविक है कि वह सूची कभी तैयार होगी भी या नहीं। शिक्षकों के लिए यह एक पहेली बन चुकी है आज हमारी सूची आएगी या नहीं। हर बार नई तारीख और हर बार नए बहाने। शायद बेसिक शिक्षा विभाग को यह समझ में नहीं आता कि शिक्षकों की जिंदगी भी किसी टाइमलाइन पर चलती है।
अब पदोन्नति की नई नीति आने की खबर है जो हर तीन साल में प्रोन्नति का वादा करती है। मगर क्या यह वादा भी पिछले वादों जैसा ही मुंगेरीलाल के सपने की तरह साबित होगा जो आते ही अनंत काल में खो जाता है। विभाग की पुरानी रफ्तार देखकर तो यही लगता है कि तीन साल की जगह छह साल में भी काम हो जाए तो गनीमत है। आठ साल से प्राइमरी के शिक्षकों का धैर्य जवाब दे चुका है। शायद उनके लिए अब पदोन्नति किसी मृगतृष्णा से कम नहीं। यह ऐसा सपना है जो दिखता तो है लेकिन हासिल नहीं होता। विभाग की अनियमितताओं और लापरवाही की इस दास्तान में शिक्षकों के पास अब उम्मीदें खोने के अलावा कुछ बचा नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह नई नीति भी उन्हीं पुरानी नीतियों की तरह कहीं कागजों में गुम हो जाएगी या फिर वास्तव में शिक्षकों की पदोन्नति का सपना पूरा होगा।
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