फेसबुक की री-ब्रांडिंग, नए नाम के बाद आपके लिए कितना बदल जाएगा फेसबुक, जानिए डिटेल
बात झूठी नहीं थी। 9 दिन पहले फेसबुक का नाम बदलने का चर्चा सोशल मीडिया पर जोर-शोर से हुई। ये भी कहा गया कि कंपनी सालाना कॉन्फ्रेंस में नए नाम का ऐलान कर सकती है। हालांकि, इसे फेसबुक से सिरे से खारिज कर दिया था।
- सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक अब 'मेटा' नाम से जानी जाएगी।
नई दिल्ली,अमन यात्रा : बात झूठी नहीं थी। 9 दिन पहले फेसबुक का नाम बदलने का चर्चा सोशल मीडिया पर जोर-शोर से हुई। ये भी कहा गया कि कंपनी सालाना कॉन्फ्रेंस में नए नाम का ऐलान कर सकती है। हालांकि, इसे फेसबुक से सिरे से खारिज कर दिया था। अब 9 दिन बाद सब कुछ वैसा ही हुआ जैसी चर्चा थी। सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक अब ‘मेटा’ नाम से जानी जाएगी।
क्या नाम बदलने से फेसबुक के अकाउंट पर कोई असर होगा? फेसबुक के हिस्सा रहने वाले वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम पर इसका कोई असर होगा? क्या मेटा के लिए यूजर्स को अलग से कोई अकाउंट बनाने की जरूरत पड़ेगी? इन तमाम सवालों के जवाब हम आपको बता रहे हैं…
सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर फेसबुक का नाम क्यों बदला गया और इससे क्या होगा?
फेसबुक एक ऐसी कंपनी है जो वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम समेत कई कंपनियों की पेरेंट कंपनी है। ऐसे में अब CEO मार्क जुकरबर्ग अपनी सभी छोटी-बड़े प्लेटफॉर्म को एक कंपनी के अंदर लाना चाहते थे। इस वजह से उन्होंने मेटावर्स तैयार की। मेटावर्स अब 93 कंपनियों की पेरेंट कंपनी बन चुकी है। जुकरबर्ग का मानना है कि टेक्नोलॉजी की शुरुआत हमने की थी और हम इस रेस में पीछे नहीं रहना चाहते। इसी वजह से मेटावर्स को तैयार किया गया है।
पिछले कुछ महीनों से फेसबुक लगातार किसी ने किसी विवाद से घिरी रही है। कंपनी के ही कई पूर्व कर्मचारियों ने उसकी पॉलिसी के बारे में गंभीर खुलासे किए हैं। कई मीडिया ऑर्गनाइजेशन ने इसे ‘फेकबुक’ का नाम तक दे दिया। ऐसे में नाम बदलने से कंपनी को लेकर होने वाली निगेटिविटी थोड़ी कम हो सकती है। मेटावर्स पर फेसबुक ही नहीं बल्कि माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियां भी निवेश कर रही हैं।
मेटावर्स क्या है और फेसबुक ने इसी नाम को क्यों चुना?
वर्चुअल रियलटी के नेक्स्ट लेवल को मेटावर्स कहा जाता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो मेटावर्स एक तरह की आभासी दुनिया होगी। इस तकनीक से आप वर्चुअल आइडेंटिटी के जरिए डिजिटल वर्ल्ड में एंटर कर सकेंगे। यानी एक पैरेलल वर्ल्ड जहां आपकी अलग पहचान होगी। उस पैरेलल वर्ल्ड में आप घूमने, सामान खरीदने से लेकर, इस दुनिया में ही अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल सकेंगे। भविष्य में इस टेक्नोलॉजी के एडवांस वर्जन से चीजों को छूने और स्मेल का अहसास कर पाएंगे। मेटावर्स शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल साइंस फिक्शन लेखक नील स्टीफेन्सन ने 1992 में अपने नोबेल ‘स्नो क्रैश’ में किया था।
नए नाम से आपके और कंपनी के लिए क्या बदलेगा?
आपके लिए कुछ नहीं बदलेगा। जी हां, मेटावर्स नाम होने से आपके फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम अकाउंट पर इसका कोई असर नहीं होगा। आपने अपने लॉगइन ID और पासवर्ड से इन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का पहले की तरह इस्तेमाल कर पाएंगे। ये हो सकता है कि आने वाले दिनों में कंपनी फेसबुक समेत इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप, ऑकुलस जैसे ऐप को मेटावर्स के साथ जोड़ दे। यानी सिंगल लॉगइन पर यूजर सभी ऐप को इस्तेमाल कर पाएगा। इससे कंपनी को ये फायदा होगा कि जो यूजर इनमें से किसी ऐप को कई दिन तक ओपन नहीं करते वो भी हमेशा ओपन रहेगा।
मेटावर्स नाम से लीगल बाउंड्रीज में क्या बदलाव आएगा?
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने बताया कि फेसबुक 2004 में शुरू हुआ। तब ये लोगों को सामाजिक स्तर पर जोड़ना चाहता था। बाद में कमर्शियल हो गया और भारत दुनियाभर में फेसबुक के लिए सबसे बड़ा मार्केट बन गया है। 2016 में कंपनी ने इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप और फेसबुक के डेटा का इंटीग्रेशन कर दिया। तब कंपनी ने किसी भी यूजर की सहमति नहीं ली। अब भारत में फेसबुक के 34 करोड़, वॉट्सऐप के 39 करोड़ और इंस्टाग्राम के 8 करोड़ के करीब यूजर्स हैं। ऐसे में फेसबुक अपनी री-ब्रांडिंग कर खुद को नए ऑर्बिट में ले जाना चाहता है। ऐसे में 5 सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब पॉलिसी सामने आने पर मिलेंगे।
1. क्या नई कंपनी का स्ट्रक्चर पुरानी कंपनी के जैसा ही रहेगा?
2. भारतीय कंपनी क्या अमेरिकी कंपनी की 100% सब्सिडियरी रहेगी और उसकी जवाबदेही क्या होगी?
3. क्या फेसबुक की जो नई कंपनी है वो पूरे भारत में टैक्स देगी?
4. नए IT नियम से जो ग्रीवांस, नोडल और कम्पालंएस ऑफिसर बनाए गए हैं, वे नई कंपनी के होंगे या पुरानी के?
5. नई कंपनी सिर्फ अपना नाम और चेहरा बदल रही है या पूरा बिजनेस मॉड्यूल। यदि हां तो फिर सरकार इससे कैसे निपटेगी?