बांदा। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने और बेहतर मातृत्व स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि शादी के दो साल बाद ही पहले बच्चे के जन्म की योजना बनायी जाए और दूसरे बच्चे के जन्म में कम से कम तीन साल का अंतर जरूर रखा जाए। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने बहुत कारगर और सुरक्षित साधनों से युक्त बास्केट ऑफ़ च्वाइस मुहैया करा रखी है। इसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि किसको, कब और कौन सा साधन अपनाना श्रेयस्कर होगा। बास्केट ऑफ़ च्वाइस में परिवार नियोजन के लिए नौ साधनों को शामिल किया गया है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आरसीएच) डा. आरएन प्रसाद का कहना है कि जिले में जिला अस्पताल सहित 65 स्वास्थ्य इकाइयों पर परिवार नियोजन काउंसलर व कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) की मदद से बॉस्केट ऑफ च्वाइस के बारे में लाभार्थी की स्थिति के अऩुसार सही परामर्श दिया जाता है। प्रत्येक माह की 21 तारीख को आयोजित होने वाले खुशहाल परिवार दिवस, प्रत्येक गुरूवार को आयोजित होने वाले अंतराल दिवस एवं प्रत्येक माह की नौ तारीख को आयोजित होने वाले प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस पर भी इस बारे में जानकारी दी जाती है। पुरुष और महिला नसबंदी, आईयूसीडी, पीपीआईयूसीडी, त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन, माला एन, कंडोम, छाया और ईसीपी की गोलियां बॉस्केट ऑफ च्वाइस का हिस्सा हैं।
बबेरू ब्लाक के बगेहटा गांव की 30 वर्षीया रामकली बताती हैं कि उसके एक पुत्री है। दूसरा बच्चा वह अभी नहीं चाहती। उसने परिवार नियोजन अपनाने की इच्छा जताई। वह चार बार अंतरा इंजेक्शन लगा चुकी हैं। इस पर उसके पति ने भी अपनी सहमति दे दी। स्वास्थ्य केंद्र में उसे बास्केट आफ च्वाइस की जानकारी हुई। यहां परिवार नियोजन के फायदे समझकर अब वह अस्थाई संसाधन के रूप में माला एन अपना रही है।
सीएमएस डा. एसएन मिश्रा बताते हैं कि परिवार नियोजन का साधन हर लाभार्थी अपनी जरूरत और पसंद के हिसाब से अपनाता है, लेकिन काउंसलर और चिकित्सकों को दिशा-निर्देश है कि वह लाभार्थी के उन पहलुओं की भी जानकारी जुटाएं जिनमें कोई साधन विशेष उनके लिए उपयुक्त है या नहीं।
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