मध्यप्रदेश

बाबा उमाकान्त जी ने किया मुक्ति न मिलने पर जीवात्मा को मिलने वाली नरक, चौरासी की तकलीफों का वर्णन

यह कितनी दुनिया ऊपरी लोकों में समा जाए, इतने बड़े-बड़े लोक हैं। टट्टी के अलग, पेशाब, मवाद, खून, कांटो, मुर्दों, अग्नि के अलग सब नर्क हैं। कर्मों के अनुसार उसमें सजा भोगनी पड़ती है।

उज्जैन,अमन यात्रा : आदि से अंत तक का भेद जानने वाले, कर्मों के विधान जिसके अनुसार सुख-दुःख मिलता है उसे सरल शब्दों में समझाने वाले, इससे परे जाकर स्थाई सुख, शांति, मुक्ति-मोक्ष का मार्ग देने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बुद्ध पूर्णिमा 15 मई 2022 सायंकाल को उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि केवल खाने-पीने और ऐश-आराम में जीवन बिताने पर मृत्यु के बाद जीवात्मा को कर्मों के अनुसार नरकों में सजा भोगनी पड़ती है। नर्क की यातना अभी आपको नहीं मालूम है।

पुराने सतसंगों में बताया गया है। छोटे-बड़े मिलाकर 42 प्रकार के नर्क हैं। यह कितनी दुनिया ऊपरी लोकों में समा जाए, इतने बड़े-बड़े लोक हैं। टट्टी के अलग, पेशाब, मवाद, खून, कांटो, मुर्दों, अग्नि के अलग सब नर्क हैं। कर्मों के अनुसार उसमें सजा भोगनी पड़ती है। जब हाथ पैर आंख कान आदि से कर्म खराब हो जाते हैं तो यह कर्म अंदर इकट्ठा होते है और फिर सजा दिलवाते हैं। जैसे हाथ, मुंह से कोई किसी का कत्ल कर देता, करवाता है तो जेल या फांसी होती है। ऐसे ही अलग-अलग कर्मों की अलग-अलग सजा मिलती है। फांसी चढ़ने के बाद प्रेत योनि में जाना पड़ता है।

अकाल मृत्यु हुई तो प्रेत योनि में जा कर तकलीफ पाओ-

प्रेतों का मुंह बहुत छोटा और पेट बड़ा होता है तो भूख बराबर बनी रहती है। परेशान रहते हैं और दूसरों को परेशान करते रहते हैं। उनका भोजन सुगंधि है, खुशबू है। मिला कहीं तो खाये नहीं तो भूखे रहते हैं। तो समझो कि उसमें जाना पड़ता है। उससे बचे तो नरकों में जाना पड़ता है। जल्दी माफ नहीं होता है। इसलिए कहते हैं कि हिंसा-हत्या करने वाले को मुक्ति-मोक्ष नहीं मिलता है। जानवर, आदमी को मारोगे तो (नरकों में) जाना, मार खाना ही पड़ेगा। वहां 2-4 दिन नहीं, कल्पों तक रहना पड़ता है।

नरकों के बाद चौरासी में भटकते रहो, दुःख पाते रहो-

जब वहां (नरक) से छूटे तब जीवात्मा जानवरों कीड़ा, मकोड़ा, सांप, बिच्छू आदि में डाल दी जाती है। मिला तो खाये नहीं तो संतोष कर लेते हैं। गर्मी में बहुत से कीड़े-मकोड़े, पक्षी बिना पानी, दाना के तड़प कर मर जाते हैं। तो ऐसे तड़पना पड़ता है, इन योनियों में जाना पड़ता है। फिर आखरी गाय-बैल की योनि के बाद ये मनुष्य शरीर मिलता है। उसके लिए भी 9 महीने माँ के पेट में लटकना पड़ता है, पेट की गर्मी बर्दाश्त करनी पड़ती है फिर तकलीफ के साथ बच्चा रोता हुआ बाहर निकलता पैदा होता है।

यदि सतगुरु नहीं मिले तो ये सब दुःख, तकलीफ बार-बार झेलनी पड़ेगी

यह सब झेलना पड़ेगा। फिर यदि सतगुरु नहीं मिले, कोई रास्ता बताने वाला नहीं मिला तो भटकते रह जाते हैं। फिर जैसे खाने-बच्चा पैदा करने में पिछले जन्मों में समय निकाल दिया ऐसे समय निकल जाता है और शरीर छोड़ते समय भी बहुत तकलीफ होती है। वह तकलीफ झेलना पड़ेगा। फिर कर्मों की सजा मिलेगी तो उसी चक्कर में चले जाएंगे। इसलिए चेतने, समझने की जरूरत है कि इस मनुष्य शरीर के रहते-रहते शरीर के चलाने वाली जीवात्मा का स्थान हम बना ले।

Author: aman yatra

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