रुरा कानपुर देहात। ध्रुव और प्रह्लाद ईश्वर के प्रति अटल विश्वास और भक्ति व सत्य की प्रतिमूर्ति हैं। वे दोनों माया-मोह को छोड़कर एक ही आधार भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानने वाले हैं। वे हरि के सच्चे भक्त हैं। भगवान को पाना है तो भक्त ध्रुव और प्रह्लाद जैसी भक्ति चाहिए। यह बातें रूरा क्षेत्र के धनीरामपुर में कथावाचक आचार्य राजेश पाण्डेय ने कहीं। श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह के चतुर्थ दिवस पर ध्रुव चरित्र, प्रह्लाद चरित्र, समुद्र मंथन के प्रसंग का वर्णन हुआ। कथावाचक पं. राजेश पाण्डेय ने कहा कि प्रभु की भक्ति करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उन पर अटूट विश्वास। वे प्रभु पर अटूट विश्वास करते हुए भक्ति करते हैं। उन्हें प्रभु की कृपा अवश्य मिलती है।
ध्रुव और प्रह्लाद दोनों ही कठोर दंड से नहीं डरे और ईश्वर की आराधना करते रहे। ठीक उसी प्रकार हमें भी जीवन के संकटों से नहीं डरना चाहिए और भगवान पर विश्वास कर उनकी आराधना में लीन होना चाहिए। भगवान अपने भक्तों की सच्ची पुकार सुनकर निश्चित ही उन पर अपनी कृपा बरसाते हैं। वर्तमान में बच्चों में अच्छे संस्कार के लिए उन्हें भक्त ध्रुव व प्रहलाद की कथा अवश्य सुनानी चाहिए। इससे उनमें अच्छे भाव व संस्कार जन्म लेते हैं।
समुद्र मंथन की कथा को विस्तार से सुनाते हुए उन्होने बताया कि समुद्र मंथन की कथा मन के मंथन की कथा है जैसे समुद्र मंथन में पहले जहर निकला वैसे ही मन के मंथन अर्थात भक्ति के मार्ग में जीव को पहले उपहास, निंदा रूपी जहर की ही प्राप्ति होती है जैसे मीरा बाई को हुई परंतु अंत में अमृत भी उन्हीं को मिला। जिन्हें नारायण पर भरोसा था संसार की चिंता किए बगैर कि गई भक्ति ही जीव को अमृत प्रदान करती है। इस दौरान यजमान राकेश शुक्ला, सुधीर तिवारी, दुर्गेश शुक्ला, नन्दन शुक्ला, अखिल, हिमांशु, आयुष शुक्ला, रोहित, मृत्युंजय मिश्रा, कृष्ण कुमार अग्निहोत्री, राजेन्द्र अग्निहोत्री, मनीष शुक्ला आदि रहे।