कालपी (जालौन)। वृन्दावन धाम से पधारी सुप्रसिद्ध कथा वाचक पं हर्षिता किशोरी ने भक्तों को श्रीमद् भागवद ग्रंथ व राम चरित मानस के गोबर्धन पूजा व रुक्मिणी विवाह का रहस्यमय ढंग से सार समझाते हुये कहा कि भगवान के मधुरतम प्रेम रस का छलकता हुआ सागर है। गागर में सागर को भरते हुये कहा कि भगवान का अहंकार ही भोजन है जिसे हम आप को धनवैभव में अंहकार उत्पन्न करते उनका सदैव भगवान अंहकार चूर करता है।
सुविख्यात, विद्धान आचार्या पं हर्षिता किशोरी ने भगवान वेदव्यास की पावन जन्म भूमि तहसील कालपी के थाना आटा क्षेत्र के ग्राम भदरेखी में स्थित बड़ी माता स्थान में श्रीमदभागवद कथा के आठवे दिवस में कथा पंडाल में उपस्थित हजारों भक्तों, श्रृद्धालुओं, श्रोताओं को अपने मुखारिविन्दु से रसपान कराते हुये भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं, गोबरधर पूजा, कृष्ण- रुकमणि विवाह आदि का विस्तृत वर्णन किया।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है। उक्त कथा सातवें दिन पं हर्षिता किशोरी ने कही कथा प्रेमी भक्तों श्रद्धालुओं को श्रवण कराते हुये कहा कि दिवाली के अगले दिन पड़ने वाले त्योहार पर लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं और परिक्रमा लगाते हैं। इस दिन भगवान को अन्नकूट का भोग लगाकर सभी को प्रसाद बांटा जाता है।
भदरेखी में धाराप्रवाह हो रही श्रीमद्भागवत कथा पं हर्षिता किशोरी ने अपने मुखारिबिन्दु मृदुल वाणी से रस पान कराते हुये कथा प्रेमियों, श्रद्धालुओं को गोबर्धन कथा का श्रवण करते हुये बताया कि श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं।
उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का एहसास हुआ। बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है वही कथा के आठवें दिन श्री कृष्ण और रुक्मणि का विवाह बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। विवाह उत्सव के दौरान प्रस्तुत किए गए भजनों के दौरान श्रद्धालु अपने आप को रोक नहीं पाए और जमकर नाचे। कथा वाचक पं हर्षिता किशोरी ने कहा कि रुक्मणि भगवान की माया के समान थीं, रुक्मणि ने मन ही मन यह निश्चित कर लिया था कि भगवान श्री कृष्ण ही मेरे लिए योग्य पति हैं लेकिन रुक्मिणी का भाई रूकमी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था इससे उसने उस विवाह को रोक कर, शिशुपाल को रुक्मिणी का पति बनाने का निश्चय किया, इससे रुक्मिणी को दुःख हुआ। उन्होंने अपने एक विश्वासपात्र को भगवान श्री कृष्ण के पास भेजा साथ ही अपने आने का प्रयोजन बताया। इसके बाद श्री कृष्ण जी विदर्भ जा पहुंचे। उधर रुक्मणी का शिशुपाल के साथ विवाह की तैयारी हो रही थी। परंतु उनकी प्रार्थना का असर हुआ और श्री कृष्ण का विवाह रुक्मणी के साथ हुआ। कथा सुनने आए सैकड़ों श्रद्धालुओं भगवान श्री कृष्ण व रुक्मणी जी की झांकी के दर्शन किये कथा में सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ रही। गोबर्धन कथा व रुक्मिणी विवाह की कथा सुन श्रोतागण भाव विभोर हुये।