कानपुर देहात,अमन यात्रा : आज जिलाधिकारी नेहा जैन द्वारा कलेक्ट्रेट सभागार में राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक पिंगली वेंकैया का जन्मदिवस समारोह के आयोजन की अध्यक्षता करते हुए उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित करते हुए उपस्थित अधिकारियों व कार्मिकों को उनके जीवन के मूल रहस्यों को उजागर करते हुए कहा कि पिंगली वेंकैया ऐसे अनसंग वारियर थे जिन्होंने देश को पहचान दिलाने हेतु अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने कहा कि पिंगली वैंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876, को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु नामक स्थान पर हुआ, इनके पिता का नाम हनुमंतरायुडु और माता का नाम वेंकटरत्नम्मा था और यह तेलुगू ब्राह्मण कुल से थे। उन्होंने बताया कि वह कई विषयों के ज्ञाता थे, उन्हें भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था। वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे। उन्होंने बताया कि आम सभी के मन में देश के अभिमान तिरंगे के प्रति भावनाओं का प्रवाह होना चाहिए कि जिस तिरंगे को इस बार फहराएं उस तिरंगे को आज़ादी के 75वें वर्षगांठ का प्रतीक मानते हुए इसे हमेशा के लिए अपने अपने घरों में सम्मान सहित संरक्षित करें, और यह गर्व की बात है कि जो जिस प्रकार आज़ादी के अमृत महोत्सव में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, पूर्ण तन्मयता से अपना योगदान दें।
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इस मौके पर अपर जिलाधिकारी (वि0/रा0) जे0पी0 गुप्ता द्वारा “आज़ाद है भारत मेरा अभिमान तिरंगा” गीत गुनगुनाकर समारोह को देश भावना की तरंग से उत्साहित कर दिया। उन्होंने गीत के माध्यम से अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि देश के अभिमान को तिरंगे के स्वरूप में हमेशा बनाये रखना हम सभी का कर्तव्य। उन्होंने कहा कि देश के कई सपूतों ने देश का भविष्य उज्ज्वल बनाने हेतु अपना योगदान दिया है, आज इस अवसर पर आज़ादी के अमृत महोत्सव में हमारे पास उन सपूतों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक अवसर है, जिसे हमें नष्ट नहीं करना चाहिए।
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तत्पश्चात जिला सूचना अधिकारी नरेंद्र मोहन द्वारा उनके महान व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन सार का संक्षिप्त दर्शन समारोह में उपस्थित सभी के समक्ष दिया। उन्होंने बताया कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक, देशभक्त एवं कृषि वैज्ञानिक, पिंगली वेंकैया को आज हम सभी याद करने, उनके द्वारा दिये गए योगदान को याद करने हेतु यहां एकत्रित हुए हैं, उनके द्वारा तिरंगे के संरचना को शोध उपरान्त अमल में लाया, उन्होंने बताया कि इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है, बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाती है। उन्होंने बताया कि पिंगली वैंकया ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वेंकैया महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया।
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इसके बाद ही देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी। इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। समारोह के दौरान कलेक्ट्रेट के कार्मिक व अधिकारी उपस्थित रहे।
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