अमन यात्रा ब्यूरो। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र लखनऊ द्वारा आज भारत विभाजन और उससे उत्पन्न विभीषिका पर एक वेबीनार का आयोजन किया गया जिसके मुख्य वक्ता प्रो सच्चिदानंद मिश्रा सदस्य सचिव भारतीय परिषद दार्शनिक एवं प्रोफेसर दर्शन एवं धर्म विज्ञान हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी ,कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ क्षेत्रीय निदेशक डॉ मनोरमा सिंह इग्नू क्षेत्रीय केंद्र लखनऊ कार्यक्रम का संचालन सहायक क्षेत्रीय निदेशक डॉ अनामिका सिन्हा अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन अपर निदेशक डॉ अनिल कुमार मिश्रा ,अतिरिक्त निदेशक डॉ कीर्ति विक्रम सिंह डा निशिथ नागर सहायक रजिस्ट्रार तथा विभिन्न अध्ययन केंद्रो के विद्यार्थी एवं समन्वयक गणों में प्रमुख रूप से 27 12 ,27 129, 27211 ,27 29, 2704, 2720 ,27 216 केंद्रों के समन्वयक एवं सहायक उपस्थित रहे। डॉ मनोरमा सिंह ने मुख्य वक्ता एवं अन्य अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज हम भारत विभाजन के दौरान उत्पन्न विभीषिका पर विचार प्रकट करने एव उस पर चिंतन करने के लिए वेबीनार कर रहे है ताकि हम जान सके कि विभाजन के दौरान एव बाद में क्या परिणाम होते हैं जिससे हम इस तरह की पुनरावृति से दूर रह सके उन्होंने कहा कि हमें अतीत से सीखना चाहिए क्योंकि भारत विभाजन के कारण 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए तथा अनेक लोगों को जान गंवानी पड़ी।
मुख्य वक्ता प्रो सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक विभाजन,वैमनस्य को दूर करने और इसे और मजबूत करने की आवश्यकता को याद दिलाना है। एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को प्राथमिकता देना है उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर किसी को ऐसा करना चाहिए धर्म या जाति के नाम पर पहचान बनाने के बजाय एक भारतीय के रूप में अपनी पहचान याद रखें उन्होंने कहा कि जब तक प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं करेगा तब तक राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता हम भारत ही नहीं बल्कि विभाजन के दौरान सभी लोगों को जिन त्रासदियों का सामना करना पड़ा उन्हें हमेशा याद रखना चाहिए। विभाजन के बाद बड़ी घटनाएं घटी जो पड़ोसी देशों में भी घटी हमें विभाजित होने के बजाय अपने देश की एकता अखंडता और संप्रभुता के लिए काम करना चाहिए। संविधान की अवधारणा को समझने की आवश्यकता है अधिकतर हम अपनी व्यक्तिगत (विशेष) पहचान को अंगीकार करने के कारण विभाजन जैसी स्थिति को जन्म देते है जबकि हमें व्यक्तिगत पहचान के बजाय राष्ट्र की पहचान को प्रमुखता देनी चाहिए।
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