
श्रीराम की आराधना हो, भाव तुलसी के।
काव्य की नित साधना हो, भाव तुलसी के।
आओ हम चिंतन करें बालपन के राम का,
वात्सल्य की बस कल्पना हो,भाव तुलसी के।
जो चरण तारें अहिल्या भक्त हितकारी बने,
उन पद कमल की वन्दना हो,भाव तुलसी के।
सर्व जन कल्याण का,ध्येय हो सबका “रमन”
प्रभु प्रेम की बस कामना हो,भाव तुलसी के।
हम सारथी साहित्य के,सार्थक होगा सृजन,
निज राष्ट्र हित की भावना हो,भाव तुलसी के।
साहित्य सागर पर बने, सेतु सुन्दर भक्ति का,
फिर शम्भु की स्थापना हो, भाव तुलसी के।
हार जाएंगे सभी कलि के दशानन देखना,
यदि साथ में सद्भावना हो, भाव तुलसी के।
रघुनाथ का मन्दिर बने, मन अवध आँगन,
श्रीराम ही की प्रार्थना हो, भाव तुलसी के।
रमाकान्त त्रिपाठी“जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम”जनपद कानपुर देहातमो.9450346879
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