
फिर एक याद आई ।
भूली बिसरी वो प्रेम कहानी ।
नवजीवन की वह पहली सांस
दिल में कई थी आस
नैनों में नूर ही नूर
प्रेमा प्रेम की धुन में
कैसा ये प्रेम का बंधन
लगता है कोई अनोखा संगम
सिर्फ एक भीनी-सी खुशबू
इन हवाओं में इन फिजाओं में
एक ही एहसास
दूर-दूर भी और पास -पास भी
सालों साल किया इंतजार
थक गई थी ये आंखें
तरस गई थी एक झलक को
अब यह हाल हुआ
मिलने लगे सपने में
हुआ अचानक आमना सामना
नजरों ने अपने आप जान लिया,
पहचान लिया
वक्त थम सा गया
मंत्र मुक्त हुई मैं खड़ी स्तब्ध- सी
दृश्य सारे हुए अदृश्य
जैसे कि नभ के बादल नवजीवन में खड़े हुए
खो गए एक दूजे में
फिर आया एक दिन कयामत का
दिल घायल मेरा छलनी- छलनी सा
एक-एक दर्द है गुलिस्ता
तुम्हारे लिए दिलों का बाजार ही तो था
मगर भूल गए तुम यह सौदागर
सिर्फ चीज बिकती है जिसमें
वहां सच्चा प्रेम कहां ?
कहते हैं प्रेम होता है अंधा ही पर
प्रेम करने वाला होता है अंधा, गूंगा और बहरा भी
आशायेॅ अब रूठ चुकी हैं
आंखों का पानी फिर भी कमबख्त
सूखता कहां है?
न हुए दोनों हमसफर
सिर्फ दिल से दिल का सफर
फिर एक याद आई ।
भूली बिसरी वो प्रेम कहानी ।।
राजश्री उपाध्याय
22/11 जे. पी. नगर- 8 बेंगलुरु
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