केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है कि देश में कोरोना टीकाकरण का आंकड़ा 75 करोड़ पार कर चुका है। आंकड़े को यूं भी परिभाषित किया जा रहा है कि देश जब आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है तो 75 करोड़ लोगों का टीकाकरण भारतीय लोकतंत्र की बड़ी उपलब्धि है। निस्संदेह देश की आधी से अधिक आबादी को टीका लगना भारत के स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी उपलब्धि कही जा रही है, लेकिन 135 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में दिसंबर तक वयस्क आबादी के पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करने के लिये अभियान में तेजी लाने की जरूरत है। हम न भूलें कि अभी अ_ारह करोड़ से अधिक लोगों को ही दोनों डोज लगी हैं। आम लोगों में यह सवाल उठता रहा है कि पहले और दूसरे टीके की संख्या में इतना अंतर क्यों है? क्या पहला टीका लगाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है? इसमें दो राय नहीं कि भारत को समय रहते देश में तैयार व देश में विकसित टीका मिल गया। हम इसके लिये विकसित देशों के मोहताज नहीं रहे। महत्वपूर्ण यह भी कि वयस्कों को यह टीका मुफ्त लगाया गया। लेकिन देश में भौगोलिक जटिलता, टीका लगाने को लेकर संकोच और अज्ञानता के चलते आबादी का एक हिस्सा टीका लगाने से परहेज करता रहा है। सार्थक यह है कि देश में कई अन्य टीके ट्रायल के अंतिम चरण में हैं। अच्छी बात यह भी है कि देश ने बच्चों के लिये जायडस-कैडिला की जायकोव-डी वैक्सीन विकसित कर ली है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जिन बच्चों को हार्ट, लंग या लीवर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ा है, उन्हें ही पहले वैक्सीन दी जाये। आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों में वयस्कों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बहरहाल, बारह से सत्रह साल के बच्चों को वैक्सीन अक्तूबर से देनी आरंभ की जायेगी।
निस्संदेह, पिचहत्तर करोड़ लोगों को टीका लगाना हमारी बड़ी उपलब्धि है, लेकिन सार्वजनिक स्थलों में बढ़ती भीड़ व कोरोना से बचाव के उपायों के प्रति हमारी लापरवाही चिंता बढ़ाने वाली है। हम न भूलें कि केरल व महाराष्ट्र अभी दूसरी लहर के कहर से मुक्त नहीं हो पाये हैं। फिलहाल आने वाले संक्रमण के आधे से अधिक मामले इन राज्यों से आ रहे हैं। हालांकि, केरल में गिरावट का दौर शुरू हो गया है, लेकिन मिजोरम समेत कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वैसे भी देश के स्वास्थ्य विज्ञानी अक्तूबर में तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दरअसल, यह देश में त्योहारों का मौसम होगा और हमारी लापरवाही भारी पड़ सकती है। बहरहाल, दूसरी लहर की भयावहता के बावजूद पूरे देश में सख्त लॉकडाउन न लगाये जाने के परिणाम अब अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव के रूप में दिखे हैं। कई सेक्टरों में आशाजनक परिणाम सामने आये हैं। विकास दर में तेजी आई है। लेकिन कोरोना से लड़ाई अभी लंबी चलनी है, जिसमें संक्रमण से बचाव के परंपरागत उपायों पर ध्यान देना होगा। इसके लिये जहां व्यक्तिगत स्तर पर भी सतर्कता जरूरी है, वहीं टीकाकरण अभियान में तेजी लाने की जरूरत है। जहां भी कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आती है, वहां युद्धस्तर पर प्रतिकार की जरूरत होगी। हालांकि देश में स्कूल खुलने लगे हैं, लेकिन सुरक्षा व बचाव के उपायों में किसी तरह की ढील नहीं दी जानी चाहिए। वह भी तब जब यह आम धारणा बन चुकी है कि तीसरी लहर बच्चों पर ज्यादा असर डालेगी। हालांकि, चौथे सीरो सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है कि साठ फीसदी बच्चों में एंटीबॉडी पायी गई है। यानी कि भले ही वे गंभीर बीमार न पड़े हों, लेकिन वे संक्रमण की जद में रहे। मगर वे संक्रमण के वाहक बनकर बड़ों को संक्रमित कर सकते हैं। हम सतर्क रहें क्योंकि केरल में निपाह वायरस ने दस्तक दे दी है और उत्तर प्रदेश में बच्चे रहस्यमय बुखार की चपेट में हैं।
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