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अमन यात्रा, हमीरपुर। सुमेरपुर आजादी के अमृत महोत्सव के मद्देनजर वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा के अन्तर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत एक बेजोड़ महान देशभक्त चन्द्र शेखर आजाद की जयन्ती 23 जुलाई पर संस्था के अध्यक्ष डॉ भवानीदीन ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये कहा कि चन्द्र शेखर आजाद सही अर्थों मे भारत मां के एक साहसी एवं समर्पित शूर थे,जंगे आजादी मे इनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है,चन्द्र शेखर बचपन से ही एक अलग सोच के थे, बचपन की कुछ घटनाएं उनके साहस एवं दृढता की गवाही देती हैं, एक बाल मित्र की चुनौती को स्वीकार करते हुये चन्द्र शेखर ने एक माचिस की पूरी तीलियाँ हाथ मे रख कर तब जलाये रखा जब तक उनका पूरा रोगन समाप्त नहीं हो गया, उनकी हथेली भी कुछ जल गयी, पर उनकी आवाज नहीं निकली, उसके बाद छात्र जीवन मे लगभग 14 -15 वर्ष की उम्र मे गांधीजी के असहयोग आंदोलन मे सहभाग करने के कारण पकडे गये, पारसी मजिस्ट्रेट मिखरेघाट ने उनसे उनके नाम,पिता के नाम और घर कहा के बारे मे पूछा, जिस पर चन्द्र शेखर ने कहा मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वाधीन है,घर जेलखाना है। इससे उनकी दृढता एवं भावी नीति का पता चलता है।उन्हें 15 बेतों की सजा मिली, पीठ की चमड़ी भी निकली किन्तु उफ नहीं किया।इसके बाद ये आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गये।अब बालक आजाद का मन देशसेवा की तरफ मुड गया, आजाद का मन्मथनाथ गुप्त एवं प्रणवेश चटर्जी जैसे महत्वपूर्ण क्रातिधर्मियो के संपर्क मे आकर क्रातिकारी हो गये, इन्होंने हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना नामक संगठन खडा किया,9 अगस्त 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व मे काकोरी ट्रेन मे डकैती डाली,काकोरी कांड मे इन्हें छोड़कर बहुत से साथी गिरफ्तार कर लिए गये, इसके बाद आजाद का झासी और ओरछा प्रवास रहा, फिर साइमन कमीशन के विरोध मे आजाद की अहम भूमिका रही, गोरो की लाठियों के प्रहार से लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गयी, आजाद ने भगतसिंह और राजगुरु के साथ मिलकर सान्डर्स को मारकर लाला जी की मौत का बदला लिया, आजाद की सलाह पर भगतसिंह ने साथियों के साथ मिलकर 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली मे बम डाला, उसके बाद काकोरी कांड और असेंबली बम कान्ड मे बिस्मिल, भगतसिंह सहित सात मित्रों को फासी हो गयी,अब नये ढग से संगठन कर रहे थे, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मे सुखदेव राज के साथ विचार विमर्श कर रहे थे, तभी एक देशद्रोही ने पुलिस को सूचना दे दी,जिस पर राज को भगा कर आजाद ने गोरों से मुकाबला किया और अन्त मे अपने वाक्य गोरों के पास ऐसी कोई गोली नहीं है जो आजाद को मार सके को चरितार्थ करते हुये बची हुई गोली से अपने को समाप्त कर लिया,27फरवरी 1931 को मात्र 25 वर्ष की उम्र आजाद शहीद हो गये, कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, अशोक अवस्थी, रमेश चंद्र गुप्ता दिलीप अवस्थी, रामसनेही, बिन्दा प्रसाद, रोहित, पुन्नी महाराज आदि शामिल रहे।
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