हमीरपुर, हरि माधव ; सुमेरपुर वर्णिता संस्था के तत्वावधान में विमर्श विविधा के अंतर्गत,जरा याद करो कुर्बानी के तहत मां भारती के समर्पित सूरमा करतार सिंह सराभा की पुण्यतिथि 16 नवंबर पर संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर भवानीदीन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सराभा सही मायने में एक सरफरोश सूरमा थे, इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है ,सराभा का जन्म 24 मई 1896 को लुधियाना के पास सराभा नामक गांव में हुआ था, इनके पिता सरदार मंगल सिंह थे और मां साहब सिंह कौर थी, बचपन में ही इनके पिता का निधन हो गया, इनकी परवरिश इनके दादा ने की, हाई स्कूल करने के बाद इनको अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान का अध्ययन करने के लिए भेजा गया, वहां पर इनका कई क्रांतिकारियों से परिचय हुआ, अमेरिका में सोहन सिंह भकना, हरनाम सिंह और काशीराम जैसे कई क्रांतिकारी काम कर रहे थे, इनका परिचय लाला हरदयाल और भाई परमानंद जैसे महान देशभक्तों से हुआ, सराभा ने
अमेरिका में एक बुजुर्ग महिला को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वहां के नायकों की पूजा और उनका अर्चन करते हुए देखा, साथ ही अमेरिका और कनाडा में रहने वाले भारतीय मजदूरों के प्रति वहां के लोगों का नस्ली भेदभाव रहता था,जो सराभा को बहुत कचोटता था,धीरे-धीरे इनके अंदर एक भावना पैदा हुई कि अपने देश को आजाद कराने के लिए कुछ करना चाहिए, आगे चलकर 21 अप्रैल 1913 को अमेरिका में रह रहे कुछ भारतीयों ने एक संगठन खड़ा किया जिसका नाम गदर पार्टी रखा गया, इस गदर पार्टी के मूल में लाला हरदयाल ,भाई परमानंद और करतार सिंह सराभा का प्रमुख सहयोग रहा ,भारत में तीन ऐसे अवसर आए जिन्हें भारत की आजादी के लिए सशस्त्र संग्राम कहा जा सकता है ,सबसे पहले 18 57 का स्वतंत्रता संग्राम उसके बाद 21 फरवरी 1915 को गदर पार्टी का विप्लव और आजादी के पहले 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन।
सरदार करतार सिंह सराभा को पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ सैन्य छावनियो मे अंग्रेजो के खिलाफ सैनिकों को भड़काने का दायित्व सौंपा गया था,जिसे सराभा नेबाखूबी निभाय, गदर पार्टी ने 21 फरवरी 1915 को विद्रोह की जो तिथि निर्धारित की थीएक भितरघाती ने उसे खोल दिया,जिस पर बहुत सारे क्रांतिकारी पकड़े गए और एक सैन्य छावनी में एक गद्दार ने सराभा को गिरफ्तार करवा दिया और लाहौर षड्यंत्र केस के अंतर्गत 27 क्रांतिकारियों को दोषी पाया गया जिनमें से 17 को फांसी की सजा हुई उनमें से एक सराभा भी थे ,सराभा को 16 नवंबर 1915 को मात्र साढे 19 वर्ष की उम्र में फांसी की सजा दी गई ,देश के प्रति इनके अनुदाय को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में अशोक कुमार अवस्थी, रमेश चंद्र गुप्ता, चित्रांशु खरे, लखन, शिवनारायण और पुन्नी महाराज आदि शामिल रहे।